हालाँकि अभी तक के पत्रकारिता अनुभव में कभी राजनीतिक टिप्पणी या राजनीतिक सम्पादकीय नहीं लिखा लेकिन अपने कुछ मित्रों की इस मान्यता से पूरा इत्तफ़ाक रखता हूँ कि किसी भी व्यक्ति का जीवन इन सबसे परे नहीं होता ,बनने या कहने को कोई कुछ भी कह सकता है। मैं वर्तमानिक यथार्थ को देखते हुए जरूर कह सकता हूँ कि इस समय में हम सबकी भूमिका /दायित्व बड़े महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं राष्ट्रनिर्माण में अतः अभिव्यक्ति बड़ी आवश्यक है।
मुझे कत्तई चिन्ता नहीं कि कौन -कौन मेरी मित्रता सूची से बाहर जाएगा , आज मैं कड़वा सच कहूँगा जिसमें सामर्थ्य हो सुनेगा ,जिसमें नहीं हो तर्क करेगा ,जिसमे ये दोनों नही हों वे स्वतन्त्र हैं।
आख़िर कौन सा कारण है कि घृणित और अपरिपक्व नेताओं का समर्थन किया जाता है?
जिनसे अपना घर ,परिवार,समाज नहीं सम्हलता वे देश सम्हालने को इतने उतावले क्यूँ होते हैं ?
कौन से वे कारण है जिसकी वज़ह से देशद्रोहियों और अपराधियों को माननीय चुना जाता है ?
कौन सी मजबूरी है जिसके कारण हर शिक्षित परिवार का व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का समर्थन करता है ?
क्यूँ ऐसा होता है कि हम हमेशा नेतृत्व कि तलाश करते हैं किसी भी अच्छे कार्य के लिए ?
क्या शुरुवात हम खुद नहीं कर सकते ?
जिस पार्टी ने देश की आन -बान -शान छीन रखी है उसका समर्थन हम क्यूँ करते रहते हैं ?
क्या देश में भ्रष्टाचार हमें दिखायी नहीं देता या दृष्टिबाह्य है हमसे ?
हमारा हक़ छीनने वाले आराम से हैं और हम भूख से जूझें इसका विरोध क्यूँ नहीं होता ?
आखिर कब तक कांग्रेस के तलुवे चाटते रहेंगे हमारे कथित बौद्धिक ?
कब तक साबित करते रहेंगे कि राहुल बुद्धिमान और सोनिया स्वदेशी है ?
कब तक साबित करेंगे कि नरेन्द्र मोदी खूनी और कान्ग्रेस पाक -साफ़ है ?
कब तक सेना का और अपने देश का सर नीचा कराते रहेंगे विश्व में ?
कब तक दूसरों से सहायता लेंगे चिकित्सा और अभियान्त्रिकी की ,जबकि विश्व के अधिकान्श विशेषज्ञ या तो भारत के हैं या फिर भारतीय मूल के ?
मस्तिष्क/बौद्धिक पलायन (ब्रेन ड्रेन )को मस्तिष्क/बौद्धिक आगमन (ब्रेन गेन ) में कब बदल पायेंगे हम ?
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में क्या अभी और साठ साल लगेंगे ?
मूल अधिकार /मूल कर्त्तव्य क्या केवल संविधान की ही विषय वस्तु है इहलोक की नहीं ?
मैं केवल इतना कहूंगा कि आप कुछ भी होने के बाद नहीं रोक सकते लेकिन होने के पूर्व जरूर रोक सकते हैं।
इन देशद्रोहियों तथाकथित सर्वधर्मसमभावकारियों को कब तक परिपोषित करेंगे आखिर कब तक /
कम से कम इतने शिक्षित तो आप जरूर हैं कि अपने (जनता के )हितैषी और और स्वहितैषियों को पहचान सकें।
चुनाव का समय है अतः निर्णय लें कि क्या करना है ?
केवल इसलिए आप मोदी को रिजेक्ट नहीं कर सकते कि उनके ऊपर तथाकथित दाग हैं , खुली आँख से देखेंगे तो हमारे गृहप्रदेश उत्तर प्रदेश में आपको दिन -दहाड़े खूनी नर्तक मिल जायेंगी ,जो साँड की तरह गली -मोहल्ले में घूम रहे हैं उनका न तो कोई बाल -बाँका करने वाला है और न ही उनपर कोई मुह खोलने वाला है ,
आप स्वीकार करिये या न करिये मोदी समय की माँग हैं ,उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है अतः मैं भी इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हूँ ,"जो देश से करे प्यार ,वो मोदी से कैसे करे इनकार "
किसी एक नेता का नाम ले डालिये केन्द्र /राज्यों से जिसमे इतनी तुर्बत हो की टूटते भारत को जोड़ सके।
विश्व के मानचित्र पर पूर्व की भाँति स्थापित कर सके। देशद्रोहियों की धमकी के बाद पटना में जाके दहाड़ सके न केवल इतना अभूतपूर्व तरीके से भीड़ को बाँध कर शान्ति अपील द्वारा सन्तुष्ट कर सके ,और भाईचारे का सन्देश देकर उन्हें जोड़ सके।
आपको दिखाई दे न दे मुझे नरेन्द्र मोदी में लाल बहादुर शास्त्री जी दिखाई पड़ते हैं।
जय जवान -जय किसान -जय विज्ञान।
वंदे मातरम् ! जय माँ भारती !!
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '
मुझे कत्तई चिन्ता नहीं कि कौन -कौन मेरी मित्रता सूची से बाहर जाएगा , आज मैं कड़वा सच कहूँगा जिसमें सामर्थ्य हो सुनेगा ,जिसमें नहीं हो तर्क करेगा ,जिसमे ये दोनों नही हों वे स्वतन्त्र हैं।
आख़िर कौन सा कारण है कि घृणित और अपरिपक्व नेताओं का समर्थन किया जाता है?
जिनसे अपना घर ,परिवार,समाज नहीं सम्हलता वे देश सम्हालने को इतने उतावले क्यूँ होते हैं ?
कौन से वे कारण है जिसकी वज़ह से देशद्रोहियों और अपराधियों को माननीय चुना जाता है ?
कौन सी मजबूरी है जिसके कारण हर शिक्षित परिवार का व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का समर्थन करता है ?
क्यूँ ऐसा होता है कि हम हमेशा नेतृत्व कि तलाश करते हैं किसी भी अच्छे कार्य के लिए ?
क्या शुरुवात हम खुद नहीं कर सकते ?
जिस पार्टी ने देश की आन -बान -शान छीन रखी है उसका समर्थन हम क्यूँ करते रहते हैं ?
क्या देश में भ्रष्टाचार हमें दिखायी नहीं देता या दृष्टिबाह्य है हमसे ?
हमारा हक़ छीनने वाले आराम से हैं और हम भूख से जूझें इसका विरोध क्यूँ नहीं होता ?
आखिर कब तक कांग्रेस के तलुवे चाटते रहेंगे हमारे कथित बौद्धिक ?
कब तक साबित करते रहेंगे कि राहुल बुद्धिमान और सोनिया स्वदेशी है ?
कब तक साबित करेंगे कि नरेन्द्र मोदी खूनी और कान्ग्रेस पाक -साफ़ है ?
कब तक सेना का और अपने देश का सर नीचा कराते रहेंगे विश्व में ?
कब तक दूसरों से सहायता लेंगे चिकित्सा और अभियान्त्रिकी की ,जबकि विश्व के अधिकान्श विशेषज्ञ या तो भारत के हैं या फिर भारतीय मूल के ?
मस्तिष्क/बौद्धिक पलायन (ब्रेन ड्रेन )को मस्तिष्क/बौद्धिक आगमन (ब्रेन गेन ) में कब बदल पायेंगे हम ?
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में क्या अभी और साठ साल लगेंगे ?
मूल अधिकार /मूल कर्त्तव्य क्या केवल संविधान की ही विषय वस्तु है इहलोक की नहीं ?
मैं केवल इतना कहूंगा कि आप कुछ भी होने के बाद नहीं रोक सकते लेकिन होने के पूर्व जरूर रोक सकते हैं।
इन देशद्रोहियों तथाकथित सर्वधर्मसमभावकारियों को कब तक परिपोषित करेंगे आखिर कब तक /
कम से कम इतने शिक्षित तो आप जरूर हैं कि अपने (जनता के )हितैषी और और स्वहितैषियों को पहचान सकें।
चुनाव का समय है अतः निर्णय लें कि क्या करना है ?
केवल इसलिए आप मोदी को रिजेक्ट नहीं कर सकते कि उनके ऊपर तथाकथित दाग हैं , खुली आँख से देखेंगे तो हमारे गृहप्रदेश उत्तर प्रदेश में आपको दिन -दहाड़े खूनी नर्तक मिल जायेंगी ,जो साँड की तरह गली -मोहल्ले में घूम रहे हैं उनका न तो कोई बाल -बाँका करने वाला है और न ही उनपर कोई मुह खोलने वाला है ,
आप स्वीकार करिये या न करिये मोदी समय की माँग हैं ,उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है अतः मैं भी इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हूँ ,"जो देश से करे प्यार ,वो मोदी से कैसे करे इनकार "
किसी एक नेता का नाम ले डालिये केन्द्र /राज्यों से जिसमे इतनी तुर्बत हो की टूटते भारत को जोड़ सके।
विश्व के मानचित्र पर पूर्व की भाँति स्थापित कर सके। देशद्रोहियों की धमकी के बाद पटना में जाके दहाड़ सके न केवल इतना अभूतपूर्व तरीके से भीड़ को बाँध कर शान्ति अपील द्वारा सन्तुष्ट कर सके ,और भाईचारे का सन्देश देकर उन्हें जोड़ सके।
आपको दिखाई दे न दे मुझे नरेन्द्र मोदी में लाल बहादुर शास्त्री जी दिखाई पड़ते हैं।
जय जवान -जय किसान -जय विज्ञान।
वंदे मातरम् ! जय माँ भारती !!
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '
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