कवि मित्र सुरेश अलबेला जी की वाल से साभार
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सन्देश दिया था,सत्य और शांति की रक्षा के लिए तलवार उठानी पड़ती है।राम धनुष के दम पर ही सीता लंका से वापस आती है।गांधीजी ने कहा था कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो।पर दुसरे पर भी मार दे तो ??? और बापू यहाँ पर लोग थप्पड़ नहीं,सीधे गोली मारते है,रीटेक का तो मौका ही नहीं मिलता।
जब रावण ने सीता जी का अपहरण किया था तो भगवान राम ने अंगद से कहा था-हे अंगद रावण को मेरा सन्देश पहुंचा दो वो सीता को सम्मान के साथ विदा कर दे मैं नहीं चाहता की असुरों का भी रक्तपात हो।पर रावण ने हठ नहीं त्यागी।और युद्द हुआ।अत्यधिक संयम और अहिंसा कायरता की श्रेणी में आतें है,हमारे राष्ट्र के पिता तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश है।गाँधी तो केवल एक भ्रम है,जिसका चश्मा पाश्चात्य संस्कृति के झूले में झूल रहे उन लोगों ने लगा रखा है जो ये समझते है की उन्हें आज़ादी भीख के कटोरे में मिली थी।अहिंसा की चादर हटाकर देखिये आज़ाद,भगत सिंह,मंगल पांडे,सावरकर,अशफाकुल्ला खां जैसे अनेक देशभक्तों की कुर्बानी की यादें उसी के नीचे दबा दी गई है।
यहाँ पर वे सारे कारण प्रस्तुत है जिसके कारण अधिकतर युवा गाँधी और गाँधी नीति के घोर विरोधी है।
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खल नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया। और जब इस नरसंहार को अपनी आँखों से देखने वाले शहीदे आज़म उधम सिंह ने लन्दन में जाकर डायर की छाती में गोलियां मारी तो गाँधी ने उधम सिंह को कातिल और पागल जैसे शब्दों से संबोधित किया।
भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप गुरू गोबिन्द सिंह,भगत सिंह,चन्द्र शेखर आज़ाद को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया।
२२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
जब रावण ने सीता जी का अपहरण किया था तो भगवान राम ने अंगद से कहा था-हे अंगद रावण को मेरा सन्देश पहुंचा दो वो सीता को सम्मान के साथ विदा कर दे मैं नहीं चाहता की असुरों का भी रक्तपात हो।पर रावण ने हठ नहीं त्यागी।और युद्द हुआ।अत्यधिक संयम और अहिंसा कायरता की श्रेणी में आतें है,हमारे राष्ट्र के पिता तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश है।गाँधी तो केवल एक भ्रम है,जिसका चश्मा पाश्चात्य संस्कृति के झूले में झूल रहे उन लोगों ने लगा रखा है जो ये समझते है की उन्हें आज़ादी भीख के कटोरे में मिली थी।अहिंसा की चादर हटाकर देखिये आज़ाद,भगत सिंह,मंगल पांडे,सावरकर,अशफाकुल्ला खां जैसे अनेक देशभक्तों की कुर्बानी की यादें उसी के नीचे दबा दी गई है।
यहाँ पर वे सारे कारण प्रस्तुत है जिसके कारण अधिकतर युवा गाँधी और गाँधी नीति के घोर विरोधी है।
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खल नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया। और जब इस नरसंहार को अपनी आँखों से देखने वाले शहीदे आज़म उधम सिंह ने लन्दन में जाकर डायर की छाती में गोलियां मारी तो गाँधी ने उधम सिंह को कातिल और पागल जैसे शब्दों से संबोधित किया।
भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप गुरू गोबिन्द सिंह,भगत सिंह,चन्द्र शेखर आज़ाद को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया।
२२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
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