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Monday, October 21, 2013

गोली पे गोली चली हुआ ह्रदय तक छेद ,
तीन पीढियां मिट गयीं फिर भी रहा विभेद ,
फिर भी रहा विभेद शत्रुता बढ़ती जाती ,
चीथड़ों में है रौंद रही मानव की जाती ,
'धीरज' कहत बताय ,दुखों का ये उत्पादन ,
खुद करता इंसान फिरे फिर क्यूँ रोता जन ,

हया ,शर्म को फेंककर लाते नए विचार ,
दृष्टिदोष का फर्क है कहते बारम्बार ,
कहते बारम्बार नए युग की तैयारी ,
लाज ,धर्म सब तजते जाते ये नर -नारी ,
नए लोक में मानव करता कैसा विचरण ,
नैतिकता से दूर हो रहा है अब जन -जन ,

नारी के उत्थान से होता जग उत्थान ,
पर नारी अपमान से गिरता जग का मान ,
नारी थी और नारी ही है संस्कार की मूल ,
फिर भी निरन्तर देता है नर -नारी उर को शूल ,
है इतिहास साक्ष्य ,कष्ट जो भी है देता ,
नष्ट हुआ वो समूल चाहे द्वापर या त्रेता ,

समरसता का भाव ही सबसे बड़ा सुझाव ,
वृक्षों से भी सीख लो शीतल देते छाँव ,
प्रेम ,सत्य और कर्म से  बनता नर भगवान ,
पर विरोध का मार्ग तो चुनता है शैतान ,
पर उपकार भाव पे पृथ्वी चलती सारी ,
परोपकार का धर्म निभाएँ हम नर-नारी ,



नहीं चाहिए मनुज को धन ,सम्पदा अपार ,
पर आवश्यक है यहाँ ,मानवता का प्यार ,
क्या धरती पर ईर्ष्या से उन्नति होती है ?
हिंसा से कब किसकी जय-जय -जय होती है? ,
सद्गुण ,शिष्टाचार ,सन्मति की गहराई ,
सुनो -गुनों और करो आचरण मेरे भाई !


     प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र  पत्रकार '







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