कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
वीर सपूत थे 'लाल बहादुर 'भारत का उत्थान किया ,
भारत था गौरवान्वित फिर भी नहीं कभी गुणगान किया ,
पाकिस्तान को घर में रौंदा ,छोड़ के फिर एहसान किया ,
प्रेरणा लेकर कर लो पूजा ,पूजा घर की थाल से।
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
नरमपंथ के बने पुरोधा ,सारी ख्याति भुनाई है ,
गांधीमय ये देश देखकर ,मुझे हंसी ही आई है ,
आजादी भारत में आई भारत माँ के लाल से !
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
सचमुच थी वो नहीं दुर्घटना ,वो घटना सुनियोजित थी ,
देख 'लाल ' की निर्मम हत्या ,भारत माँ भी लज्जित थी ,
हत्यारे शासक बन बैठे ,अपनी ओछी चाल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
जिनके लहू देशहित निकले वो विद्रोही कहलाये ,
ह्रदय विदीर्ण राष्ट्र का करके राष्ट्रपिता मन को भाये ,
सच्चाई क्या कहती थी खुद उनके नर कंकाल से ?
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
बोस ,बहादुर ,वल्लभभाई ,या की फिर आजाद थे ,
इनके लिए 'गांधी ' बतलाते ,इनके कार्य विवाद थे ,
नहीं बच सके नेक पुरोधा उस गांधी की चाल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
उसी चाल को नित अपनाता गांधी नाम भुनाता है ,(वर्तमान शासन )
देशलूट कर गए विदेशी ,इनका नंबर आता है ,
लूट लिया ये राष्ट्र हमारा ,गिरी नीति विकराल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से।
प्रणेता -
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '
(काव्य और प्रणेता के विचार सर्वथा निजी हैं और पुख्ता प्रमाणों पर आधारित भी। अगर किसी को इससे दुःख या समस्या होती है तो कृपया मुझे मित्रता सूची से पृथक कर दें ! आपकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी हूँ )
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