खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
चल रही संकट की आंधी ,फिर भी जनता क्यूँ न जागी ?
भ्रष्ट केवल वो नहीं हैं ,हम भी हैं उसमे सहभागी ,
यदि अनीति राह आये उसको सब मिलकर ढहाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब ,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
पाप धोते -धोते गंगा ,अब प्रदूषण की निशानी ,
यमुना रुक दिल्ली में कहती क्या बचा है मुझमे पानी ?
शुद्ध कर लो मन प्रथम और घर में ही गंगा नहाओ। .
खुद की चिंता छोड़ दो अब ,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
मदिरा ,खैनी औ धुएं की लिखूं मैं कितनी कहानी ,
लील ली इन व्यसनों ने ,जाने कितनों की जवानी
शुद्ध सेवन ,शुद्ध भोजन खुद के अपने घर में खाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
ज्ञान का व्यापार छोडो ,दान से उद्धार कर लो ,
पठन-पाठन के चलन से व्याप्त ये संसार कर लो ,
ज्ञान और विज्ञान से रोते ह्रदय को तुम हंसाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
हिन्दू -मुस्लिम -सिख और ईशा के भक्तो तुम बताओ ,
कौन पुस्तक कहती तुमसे ,खून की नदियाँ बहाओ ,
धर्म तो तादात्म्य केवल मनुजता के गीत गाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
जाति और विद्वेष नीति ,मजहबों को बांटती है ,
विविधता का रूप समझ ये मनुजता को काटती है ,
साथ मिलकर चलो फिर से मत मिटो खुद मत मिटाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
विश्व की है ये विरासत नहीं केवल देश भारत ,
'विश्वगुरु ' का ताज लेकर रो रहा है आज भारत ,
सिद्ध कर दो फिर से मिलकर खोया गौरव फिर से लाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
सबकी माँ में माँ ही देखो ,बहन में निज बहन पाओ ,
नारी की मातृत्व महिमा ,यूँ न दिल से तुम भुलाओ ,
हो न पुनरावृत्ति ऐसी ,मन में ऐसा प्रण बनाओ। (सन्दर्भ १६ दिसंबर दिल्ली )
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,
आप सबकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी -
प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '
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