करते अरण्य रोदन उनको यथार्थ दिखलाने वाला हूँ ,
रचनाकौशल की सुधावृष्टि ,अज्ञान मिटाने वाला हूँ ,
कथनी -करनी का भेद मिटाना सेवा देना काम मेरा ,
विकृति से हो न सके शिकार ,है ऐसा 'धीरज ' नाम मेरा ,
जीवन्त बने रहना सुमन्त ,जब अन्धकार मन पर वारे ,
मैं राष्ट्रभक्त की चरणधूलि पर शीश नवाने वाला हूँ ,
महादेव की पूजा की अभिलाषा मेरा ध्येय नहीं ,
देवी माँ की भक्ती भी है यद्यपि मुझको हेय नहीं ,
मन्दिर ,मस्जिद ,चर्च और गुरुद्वारे में क्या रखा है ,
नहीं कामना अधिक ज्ञान की जो भी मुझको ज्ञेय नही,
मातृभूमि हित जीवन वारा वे ही हैं आराध्य मेरे ,
उसी चरण का सेवक मैं ,बस कदम बढ़ाने वाला हूँ ,
माता से ही बने हुए जो निशिदिन शीश नवाते थे ,
मातु -पिता ,अग्रज ,बुजुर्ग सबके ही चरण दबाते थे ,
देशहिताय दिया जीवन ,करता प्रणाम सम्पूर्ण राष्ट्र ,
देशभूमि की सेवा में ही सब कुछ वो पा जाते थे ,
कृतकृत्य हुआ लेखन मेरा गुणगान करे इन भक्तों का ,
जड़ ,चेतन का भी भान दिखे मैं कलम चलाने वाला हूँ ,
अशफाक हुए कुर्बान जहाँ ,वो किसमें कब करती विभेद ,
ये मातृभूमि हम सबकी है ,धर्मों का इसमें नहीं छेद ,
रक्तिम भूतल को देख कभी क्या जाति ज्ञान हो पाता है ,
भारत माँ का हर सेवक तो बस राष्ट्रभक्त कहलाता है ,
फिर जाति -पाति के पोषण से क्यूँ उठती जाती राजनीति ,
इस भेद -भाव की कुटिल व्यवस्था से टकराने वाला हूँ ,
जो मात्र कथन का नहीं वरन कर्मों का शौर्य दिखाते हैं ,
वे पग-पग पे इतिहास बनाते और सफलता पाते हैं ,
संघर्षों का साथ और दुखों से तनिक दुराव नहीं ,
इन सबको सहचर बना राह में केवल चलते जाते हैं ,
मेरा प्रयास युग परिवर्तन जिसमे भारत हो विश्वगुरु ,
मैं अन्गद सा दृढ भाव लिए अब पाँव जमाने वाला हूँ ,
प्रतिक्रिया एवं सुझाव की आकांक्षा में -
प्रणेता-
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज'
'स्वतन्त्र पत्रकार '
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