परम आदरणीय दीदी जी डॉ.गीता त्रिपाठी जी की प्रेरणा द्वारा !!
लालू के दिन लद गये भैया बड़े हर्ष की बात है ,
नहीं मनुज के केवल ये जीवों के भी जज्बात हैं ,
महल भूमि में मिल जाते हैं छोटी सी एक आह से ,
चिंगारी शोला बन जाती करुना भरी पुकार से ,
जीव जंतु कुछ स्वयं न कहते ,ये विडंबना भारी है ,
मूक जीव के मन की पीड़ा लगती कठिन करारी है ,
कहते ग्रन्थ देख लो भाई ,खाते वक्त न बोलो बाण ,
कोटिश जीव का चारा खाया फिर भी तुम करते अभिमान ,
दुआ -बद्दुआ दोनों ही तो समय साथ ही चलते हैं ,
महल बनाती अगर दुआ ,तो आह संग ये जलते हैं (बद्दुआ से )
समय एक सा रहा नहीं चाहे वो राम या रावण हो ,
सबको ये यथार्थ दिखलाता ,पत्थर हो या राजकण हो ,
एक समय था बस बिहार में लालू -लालू होता था ,
थाने या गाडी में अफसर भैंस बेच के सोता था ,
चोरी करके चोर निकलता ,लेके अस्सी की रफ़्तार ,
पीछे पुलिस दौड़ती लेकर गाडी में दस की रफ़्तार ,
सड़के ,भवन ,और रुग्णालय सबका रहता खस्ताहाल ,
बस भी दो तल की हो जाती ये था लालू जी का काल,
लालू ने बदनाम किया इस जग में जिसका नाम बिहार ,
हर्ष हो रहा ख़ुशी हो रही उनको मिला आज व्यवहार ,
यह विडंबना भारत की लालू जैसा नेता होता ,
चयन गलत का मान प्रतिष्ठा सब कुछ ही तो है खोता ,
लालू ,आजम या की दिग्विजय जनसेवा के योग्य नहीं ,
जनता और जीव हैं साहब खाने के ये भोग्य नहीं।
प्रणेता
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतंत्र पत्रकार '
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