Pages

Tuesday, October 29, 2013

हालाँकि अभी तक के पत्रकारिता अनुभव में  कभी राजनीतिक टिप्पणी या राजनीतिक सम्पादकीय नहीं लिखा लेकिन अपने कुछ मित्रों की इस मान्यता से पूरा इत्तफ़ाक  रखता हूँ कि किसी भी व्यक्ति का जीवन इन सबसे परे नहीं होता ,बनने या कहने को कोई कुछ भी कह सकता है। मैं वर्तमानिक यथार्थ को देखते हुए जरूर कह सकता हूँ कि इस समय में हम सबकी भूमिका /दायित्व बड़े महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं राष्ट्रनिर्माण में अतः अभिव्यक्ति बड़ी आवश्यक है।
                           मुझे कत्तई चिन्ता नहीं कि कौन -कौन मेरी मित्रता सूची से बाहर जाएगा , आज मैं कड़वा सच कहूँगा जिसमें सामर्थ्य हो सुनेगा ,जिसमें नहीं हो तर्क करेगा ,जिसमे ये दोनों नही हों वे स्वतन्त्र  हैं।

आख़िर कौन सा कारण है कि घृणित और अपरिपक्व नेताओं का समर्थन किया जाता है?
जिनसे अपना घर ,परिवार,समाज नहीं सम्हलता वे देश सम्हालने को इतने उतावले क्यूँ होते हैं ?
कौन से वे कारण  है जिसकी वज़ह से देशद्रोहियों और अपराधियों को माननीय चुना जाता है ?
कौन सी मजबूरी है जिसके कारण हर शिक्षित परिवार का व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का समर्थन करता है ?
क्यूँ ऐसा होता है कि हम हमेशा नेतृत्व कि तलाश करते हैं किसी भी अच्छे कार्य के लिए ?
क्या शुरुवात हम खुद नहीं कर सकते ?

जिस पार्टी ने देश की आन -बान -शान  छीन रखी है उसका समर्थन हम क्यूँ करते रहते हैं ?
क्या देश में भ्रष्टाचार हमें दिखायी नहीं देता या दृष्टिबाह्य है हमसे ?
हमारा हक़ छीनने वाले आराम से हैं और हम भूख से जूझें इसका विरोध क्यूँ नहीं होता ?
आखिर कब तक कांग्रेस के तलुवे चाटते रहेंगे हमारे कथित बौद्धिक ?
कब तक साबित करते रहेंगे कि राहुल बुद्धिमान और सोनिया स्वदेशी है ?
कब तक साबित करेंगे कि नरेन्द्र मोदी खूनी और कान्ग्रेस पाक -साफ़ है ?
कब तक सेना का और अपने देश का सर नीचा कराते रहेंगे विश्व में ?
कब तक दूसरों से सहायता लेंगे चिकित्सा और अभियान्त्रिकी की ,जबकि विश्व के अधिकान्श विशेषज्ञ या तो भारत के हैं या फिर भारतीय मूल के ?
मस्तिष्क/बौद्धिक  पलायन (ब्रेन ड्रेन )को मस्तिष्क/बौद्धिक आगमन (ब्रेन गेन ) में कब बदल पायेंगे हम ?
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में क्या अभी और साठ साल लगेंगे ?
मूल अधिकार /मूल कर्त्तव्य क्या केवल संविधान की ही विषय वस्तु है इहलोक की नहीं ?


मैं केवल इतना कहूंगा कि आप कुछ भी होने के बाद नहीं रोक सकते लेकिन होने के पूर्व जरूर रोक सकते  हैं।
इन देशद्रोहियों तथाकथित सर्वधर्मसमभावकारियों को कब तक परिपोषित करेंगे आखिर कब तक /
कम से कम इतने शिक्षित तो आप जरूर हैं कि अपने (जनता के )हितैषी और और स्वहितैषियों को पहचान सकें।

चुनाव का समय है अतः निर्णय लें कि क्या करना है ?
केवल इसलिए आप मोदी को रिजेक्ट नहीं कर सकते कि उनके ऊपर तथाकथित दाग हैं , खुली आँख से देखेंगे तो हमारे गृहप्रदेश उत्तर प्रदेश में आपको दिन -दहाड़े खूनी नर्तक मिल जायेंगी ,जो साँड की तरह गली -मोहल्ले में घूम रहे हैं उनका न तो कोई बाल -बाँका करने वाला है और न ही उनपर कोई मुह खोलने वाला है ,
आप स्वीकार करिये या न करिये मोदी समय की माँग हैं ,उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है अतः मैं भी इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हूँ ,"जो देश से करे प्यार ,वो मोदी से कैसे करे इनकार "
किसी एक नेता का नाम ले डालिये केन्द्र /राज्यों से जिसमे इतनी तुर्बत हो की टूटते भारत को जोड़ सके।
विश्व के मानचित्र पर पूर्व की भाँति स्थापित कर  सके।  देशद्रोहियों की धमकी के बाद पटना में जाके दहाड़ सके न केवल इतना अभूतपूर्व तरीके से भीड़ को बाँध कर शान्ति अपील द्वारा सन्तुष्ट कर सके ,और भाईचारे का सन्देश देकर उन्हें जोड़ सके।
आपको दिखाई दे न दे मुझे नरेन्द्र मोदी में लाल बहादुर शास्त्री जी दिखाई पड़ते हैं।
जय जवान -जय किसान -जय विज्ञान।
वंदे मातरम् ! जय माँ भारती !!


डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '














Sunday, October 27, 2013

बचपन -

 क्या आपको याद है ?
कड़क ठण्ड में अर्धनग्न कपड़ों में घूमना ,
तितली पकड़कर मुट्ठी में लेकर चूमना ,
तपती दोपहरी में नंगे पाँव टहलना ,
मासूम से पाँवों का रेत  से जलना ,
त्यौहारों के  बहुत पहले आने की  ललक ,
कभी -कभार देखते थे शहर की  झलक ,
अपनी इच्छा पर  जम के अड़ जाना ,
छोटी बातों पर किसी से लड़ जाना ,
मेलों के लिए पाँच रूपये की  चाह ,
केवल पॉपुलर थी जलेबी की  आह ,
तख्ती पे लिखकर चमकाने की आदत ,
रंगों से स्याही बनाने की आदत ,
गुरु जी और बड़ों के पैरों में झुकना ,
आता नहीं था बचपन में भी रुकना ,
कक्षा में जोर -जोर से पहाड़े पढ़ाना ,
गुरु जी के लिए भरकर साफ़ पानी लाना ,
गलती पे बेतों से जमकर पिटाई ,
इसके बिना विद्या कब किसको आई ,
दिये की रोशनी और दिये का भभकना ,
हवा के रुकने तक दिये  को तकना ,
बारिस के मौसम में घर का टपकना ,
कोने -किनारों में बर्तन को रखना ,
इतने पे भी बारिस जम के बरसती ,
हर माँ थी रोटी बनाने को तकती ,
फिर मच्छरों की कृपा क्या बतायें ,
सोते थे जब उनको संग में सुलाए ,
इन सब विपत्तियों से जब होते आहत,
बरस पड़ती तब-तब माँ-पापा की चाहत ,
खेतों ,खलिहानों में भी जमके रहना ,
बचपन का भी मित्रों क्या ही है कहना ,
हमने ग़रीबी को शिद्दत से झेला ,
अब नर्सरी होते तब था तबेला ,
कहने में लज्जा तनिक भी न होती ,
गरीबी की बातें गरीबों से होती ,
परिश्रम का तोहफ़ा तो तब जाके पाया ,
अच्छे विचारों को मन में बिठाया ,
ग़रीबी विचारों में घुसने न पाये ,
घूमें बेशक हम आधे पेट खाए ,
गर्व होता भूत के वो दिन याद करके ,
भूले न संस्कृति और संस्कार घर के ,
सामान्य जीवन तो अब जी रहे हैं ,
सब के सवालात अब सी रहे हैं ,
तब घर की बदहाली हम देखते थे ,
जलती दीवाली सपन देखते थे ,
अब देश कन्गाल झुकता -झुकाता ,
हिंसा -अहिंसा की बातें बताता ,
तब की गरीबी सपन बेचती थी ,
धोती को करके कफ़न बेचती थी ,
अब की गरीबी विचारों में बैठी ,
नेता ,अभिनेता और शिक्षक में पैठी ,
आओ भगायें गरीबी वचन की ,
स्थापना होगी  सच्चे सुमन की ,


डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज'
'स्वतन्त्र पत्रकार '







आदरणीय ! मेरा ऐसा मानना है कि  ये हम सबका सौभाग्य (एक भाग्य नहीं वरन् सौ -भाग्यों का समुच्चय =सौभाग्य  )है कि आपका मार्गदर्शन ,ज्ञानान्धकार रूपी कुहासे को अपगत करती विषयविशेषज्ञता ,विभिन्न विषयों ,कलाओं ,विद्याओं  का दैदीप्यमान रसप्रवाह और आपकी रचनामाधुरी का प्रत्यक्ष श्रवण ,मनन ,निदिध्यासन हमें प्राप्त होता है। न केवल इतना अपितु  जिन्हें शिष्टाचार का  ज्ञान नहीं है ,जो आम आदमी की दिनचर्या से सर्वथा अपरिचित है ,सैन्यज्ञान ,संस्कृतिज्ञान ,वेद ,पुराण ,उपनिषद से जो अनभिज्ञ है इन सबका साक्षात्कार आपके माध्यम से हो जाता है किम्बहुना विभिन्न धर्मग्रन्थों जैसे -बाईबिल ,कुरान-ऐ -पाक ,गुरुग्रंथ साहिब इन सबका सन्क्षिप्त वृत्तान्त भी आपके माध्यम से हमें मिलता रहता है।  अतः आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है की हमारे मानसगमन में अपनी  स्नेहसंवीत अस्तमौनता से नान्यथाभूत भावभुवन का लोक सदा ही सृजित करते रहेंगे। आपको कोटिशः नमन ! 

Tuesday, October 22, 2013

करते अरण्य रोदन उनको यथार्थ दिखलाने वाला हूँ ,
रचनाकौशल की सुधावृष्टि ,अज्ञान मिटाने वाला हूँ ,
कथनी -करनी का भेद मिटाना सेवा देना काम मेरा ,
विकृति से हो न सके शिकार ,है ऐसा 'धीरज ' नाम मेरा ,
जीवन्त बने रहना सुमन्त ,जब अन्धकार मन पर वारे ,
मैं राष्ट्रभक्त की चरणधूलि पर शीश नवाने वाला हूँ ,

महादेव की पूजा की अभिलाषा मेरा ध्येय नहीं ,
देवी माँ की भक्ती भी है यद्यपि मुझको हेय नहीं ,
मन्दिर ,मस्जिद ,चर्च और गुरुद्वारे में क्या रखा है ,
नहीं कामना अधिक ज्ञान की जो भी मुझको ज्ञेय नही,
मातृभूमि हित जीवन वारा वे ही हैं आराध्य मेरे ,
उसी चरण का सेवक मैं ,बस कदम बढ़ाने वाला हूँ ,

माता से ही बने हुए जो निशिदिन शीश नवाते थे ,
मातु -पिता ,अग्रज ,बुजुर्ग सबके ही चरण दबाते थे ,
देशहिताय दिया जीवन ,करता प्रणाम सम्पूर्ण राष्ट्र ,
देशभूमि की सेवा में ही सब कुछ वो पा जाते  थे ,
कृतकृत्य हुआ लेखन मेरा गुणगान करे इन भक्तों का ,
जड़ ,चेतन का भी भान दिखे मैं कलम चलाने वाला हूँ ,

अशफाक हुए कुर्बान जहाँ ,वो किसमें कब करती विभेद ,
ये मातृभूमि हम सबकी है ,धर्मों का इसमें नहीं छेद ,
रक्तिम भूतल को देख कभी क्या जाति ज्ञान हो पाता  है ,
भारत माँ का हर सेवक तो बस राष्ट्रभक्त कहलाता है ,
फिर जाति -पाति के पोषण से क्यूँ उठती जाती राजनीति ,
इस भेद -भाव की कुटिल व्यवस्था से टकराने वाला हूँ ,

जो मात्र कथन का नहीं वरन कर्मों का शौर्य दिखाते हैं ,
वे पग-पग पे इतिहास बनाते और सफलता पाते हैं ,
संघर्षों का साथ और दुखों से तनिक दुराव नहीं ,
इन सबको सहचर बना राह में केवल चलते जाते हैं ,
मेरा प्रयास युग परिवर्तन जिसमे भारत हो विश्वगुरु ,
मैं अन्गद सा दृढ भाव लिए अब पाँव जमाने वाला हूँ ,

 प्रतिक्रिया एवं सुझाव की आकांक्षा में -
             प्रणेता-
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज'
'स्वतन्त्र पत्रकार ' 






औरतें –
मनाती हैं उत्सव
दीवाली, होली और छठ का
करती हैं घर भर में रोशनी
और बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगी
खुशियों की मुस्कान
फिर, सूर्य देव से करती हैं
कामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए।
औरतें –
मुस्कराती हैं
सास के ताने सुनकर
पति की डाँट खाकर
और पड़ोसियों के उलाहनों में भी।

औरतें –
अपनी गोल-गोल
आँखों में छिपा लेती हैं
दर्द के आँसू
हृदय में तारों-सी वेदना
और जिस्म पर पड़े
निशानों की लकीरें।

औरतें –
बना लेती हैं
अपने को गाय-सा
बँध जाने को किसी खूँटे से।

औरतें –
मनाती है उत्सव
मुहर्रम  का हर रोज़
खाकर कोड़े
जीवन में अपने।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
रखकर करवाचौथ का व्रत
पति की लम्बी उम्र के लिए
और छटपटाती हैं रात भर
अपनी ही मुक्ति के लिए।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
बेटों के परदेस से
लौट आने पर
और खुद भेज दी जाती हैं
वृद्धाश्रम के किसी कोने में 
साभार -अंजना बख्शी 

Monday, October 21, 2013

गोली पे गोली चली हुआ ह्रदय तक छेद ,
तीन पीढियां मिट गयीं फिर भी रहा विभेद ,
फिर भी रहा विभेद शत्रुता बढ़ती जाती ,
चीथड़ों में है रौंद रही मानव की जाती ,
'धीरज' कहत बताय ,दुखों का ये उत्पादन ,
खुद करता इंसान फिरे फिर क्यूँ रोता जन ,

हया ,शर्म को फेंककर लाते नए विचार ,
दृष्टिदोष का फर्क है कहते बारम्बार ,
कहते बारम्बार नए युग की तैयारी ,
लाज ,धर्म सब तजते जाते ये नर -नारी ,
नए लोक में मानव करता कैसा विचरण ,
नैतिकता से दूर हो रहा है अब जन -जन ,

नारी के उत्थान से होता जग उत्थान ,
पर नारी अपमान से गिरता जग का मान ,
नारी थी और नारी ही है संस्कार की मूल ,
लगातार क्यूँ दे रहा नर -नारी उर को शूल ,
है इतिहास साक्ष्य ,कष्ट जो भी है देता ,
नष्ट हुआ वो समूल चाहे द्वापर या त्रेता ,

समरसता का भाव ही सबसे बड़ा सुझाव ,
वृक्षों से भी सीख लो शीतल देते छाँव ,
प्रेम ,सत्य और कर्म से  बनता नर भगवान ,
पर हिंसा  का मार्ग तो चुनता है शैतान ,
पर उपकार भाव पे पृथ्वी चलती सारी ,
परोपकार का धर्म निभाएँ हम नर-नारी ,



नहीं चाहिए मनुज को धन ,सम्पदा अपार ,
पर आवश्यक है यहाँ ,मानवता का प्यार ,
क्या धरती पर ईर्ष्या से उन्नति होती है ?
हिंसा से कब किसकी जय-जय -जय होती है? ,
सद्गुण ,शिष्टाचार ,सन्मति की गहराई ,
सुनो -गुनों और करो आचरण मेरे भाई !


उपर्युक्त रचना  नए लय का प्रयास  मात्र है ,आप सबकी प्रतिक्रया शिरोधार्य होगी ।

     प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '

'स्वतन्त्र  पत्रकार '
गोली पे गोली चली हुआ ह्रदय तक छेद ,
तीन पीढियां मिट गयीं फिर भी रहा विभेद ,
फिर भी रहा विभेद शत्रुता बढ़ती जाती ,
चीथड़ों में है रौंद रही मानव की जाती ,
'धीरज' कहत बताय ,दुखों का ये उत्पादन ,
खुद करता इंसान फिरे फिर क्यूँ रोता जन ,

हया ,शर्म को फेंककर लाते नए विचार ,
दृष्टिदोष का फर्क है कहते बारम्बार ,
कहते बारम्बार नए युग की तैयारी ,
लाज ,धर्म सब तजते जाते ये नर -नारी ,
नए लोक में मानव करता कैसा विचरण ,
नैतिकता से दूर हो रहा है अब जन -जन ,

नारी के उत्थान से होता जग उत्थान ,
पर नारी अपमान से गिरता जग का मान ,
नारी थी और नारी ही है संस्कार की मूल ,
फिर भी निरन्तर देता है नर -नारी उर को शूल ,
है इतिहास साक्ष्य ,कष्ट जो भी है देता ,
नष्ट हुआ वो समूल चाहे द्वापर या त्रेता ,

समरसता का भाव ही सबसे बड़ा सुझाव ,
वृक्षों से भी सीख लो शीतल देते छाँव ,
प्रेम ,सत्य और कर्म से  बनता नर भगवान ,
पर विरोध का मार्ग तो चुनता है शैतान ,
पर उपकार भाव पे पृथ्वी चलती सारी ,
परोपकार का धर्म निभाएँ हम नर-नारी ,



नहीं चाहिए मनुज को धन ,सम्पदा अपार ,
पर आवश्यक है यहाँ ,मानवता का प्यार ,
क्या धरती पर ईर्ष्या से उन्नति होती है ?
हिंसा से कब किसकी जय-जय -जय होती है? ,
सद्गुण ,शिष्टाचार ,सन्मति की गहराई ,
सुनो -गुनों और करो आचरण मेरे भाई !


     प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र  पत्रकार '







Thursday, October 17, 2013

है युवा वर्ग का शंखनाद आओ मिलकर कुछ ख़ास लिखें ,
ग़ज़ल गीत अब बहुत हुआ लिखना है तो इतिहास लिखें ,
अरि  सीने तक आता है चढ़ और गला काट ले जाता है ,
इन नपुंसकों को घर में घुसकर मार गिराना ही होगा ,
सहनशक्ति अब बहुत हो गयी सबक सिखाना ही होगा ,

बिकते न केवल जीव जंतु इन्सानों को बिकते देखा ,
सड़कों पे अस्मत बची रही पर थानों  में लुटते देखा ,
था कहाँ कब ये दुष्कर्म हुआ सब सीधे -सीधे बतलाओ ,
आरोप लगाती क्यूँ सज्जन पर सीधे अपने घर जाओ ,
सोते भारत में 'लक्ष्मी '(लक्ष्मीबाई )को फिर शस्त्र उठाना ही होगा , 
सहन शक्ति अब बहुत हो गयी……………………….


सरकारी अफ़सर दफ्तर में कम ,मैख़ाने में मिलते हैं ,
रिश्वत से सुबह शुरू होती ,रिश्वत में सूरज ढलते हैं ,
ईमान बचा कुछ में ही बस ,बेईमान की संख्या भारी है ,
बेईमानों की बातें सुनना ,अच्छों की अब लाचारी है ,
अपनी संघर्ष समस्या को खुद ही सुलझाना ही होगा ,

सहन शक्ति अब बहुत हो गयी……………………….

महती भयपूर्ण बनी जाती ये हाल है बेसिक शिक्षा का ,
सप्ताह ,माह में जाना है स्कूल है अपनी इच्छा का।,
गुरु खुद ही शर्म समझता है नित शिक्षा ,पाठ पढ़ाने में ,
वो बहुत व्यस्त है जनगणना औ भवन नया बनवाने में ,
जो जहर बाँट कर खिलवाया अब इन्हें खिलाना ही होगा ,(मिड डे मील )
सहन शक्ति अब बहुत हो गयी……………………….

मीडिया हमारा  नहीं वरन नेताओं की चौपाल बना ,
बस एक शब्द नेता जी का उसका ही तो भौकाल बना ,
जन साधारण की चिंता में क्या कभी किसी का ध्यान गया ,
इन चौपालों की दुनिया में ही सबका सारा ज्ञान गया ,
जन बीच पहुँचकर लेखन का कर्त्तव्य निभाना ही होगा ,
सहन शक्ति अब बहुत हो गयी……………………….

सहने की भी सीमा होती ,ये भी पापों में आता है ,
करने से ज्यादा सहने को अधर्म शास्त्र बतलाता है ,
समझौता अब नहीं चलेगा अब प्रतिकार जरूरी है ,
स्त्री से भी कमतर क्यूँ हो ,अब ये कैसी मजबूरी है ,
चेनम्मा ,दुर्गावती शौर्य का पाठ पढ़ाना ही होगा ,
सहन शक्ति अब बहुत हो गयी……………………….


आपकी प्रतिक्रिया एवं सलाह का आकांक्षी -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज'
'स्वतन्त्र पत्रकार '














Tuesday, October 15, 2013




दुष्ट, दुशासन,दुर्योधन ,दुष्कर्मी ,दुराचारी ,
द्रुपद दुलारी द्रौपती का करते थे अपमान सदा ,
उसी भाँति 'संप्रग'  शासन में हैं सारे भ्रष्टाचारी ,
शपथ ली है लूटेंगे पूरे भारत को मिलके सदा ,
खाद्य घोटाला नहीं है अंतिम होंगे अभी कई सारे ,
शीघ्र आप भी देखोगे की भूख आपके है द्वारे ,
नहीं आपदा में मरते जितने इस भूख ने मारे हैं,
पर ये नहीं विरोध करेंगे क्यूंकि ये सब बेचारे हैं ,
कहता है नित नयी कहानी भारत भ्रष्टाचार की ,
कोई कैसे बतलाये पीड़ा उस भूख के मार की ,
हर चौथा है रुग्णशिशु अब नयी मिली है परिभाषा ,
हमसे आगे तो है वो पाक -कैसे करे अब हम आशा ? ,

नयी -नयी परिभाषा में ,करते हैं भ्रमित ये नेतागण ,
कैसा विकास जो है अदृश्य ,कैसे उत्थान की है ये धुन ,
महंगाई से बोझिल जन ,अब पेट भरे या विरोध करे ?
अपने में ही है जूझ रहा ,वो कैसे कोई प्रतिरोध करे?
गर हिम्मत कर ले लड़ने की तो हममें ही एकत्व नहीं ,
बिना समूह सुनीति के खुद का भी कोई महत्त्व नहीं ,
परिवर्तन की है आश बहुत इसके प्रति भाव जरूरी है ,
दूजों से कल को लड़ लेंगे हममें सद्भाव जरुरी है ,
कोटि प्रयोगी ऍफ़बी (फेसबुक)के गर राष्ट्रहितों के चिन्तक हों ,
डंके की चोट पे कहता हूँ फिर हर अनीति का द्रुत अंत हो ,
आशा व प्रार्थना मेरी है नवभारत का निर्माण करें ,
विश्वगुरु सा चमक सके हम इतना इसे महान करें,

आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव का आकांक्षी -
प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज ' 
'स्वतंत्र पत्रकार '






Thursday, October 10, 2013




चिराग हो के न हो दिल जला के रखते हैं
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखतें हैं

बस एक ख़ुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा बना के रखतें हैं

हमें पसंद नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं

कहीं ख़ूलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े करीने से घर को सजा के रखते हैं
                                                                                                                                                                                          साभार ……………………अज्ञात 

Friday, October 4, 2013

न्याय आज अन्याय से भी बेकार हुआ ,ये हमारे देश की विचित्र लाचारी है ,
रक्त से विषाक्त हाथ जनता का  सेवक हैं ,लेकिन ये जनता सदा से बेचारी है ,
बीस बार सहके एकाध में विरोधभाव ,ऐसी निश्छल  देखो जनता हमारी है ,
एक घर छोड़ बढे दुसरे घरन मा जब ,भ्रष्टाचार की तो सगल बीमारी है ,
झूठ,दंभ ,झगड़ा -फसाद की राह में तो नयी पीढी का बहुमूल्य योगदान है ,
फैशन में खुद की शरीर का पता ही नहीं कहाँ पे है आँख और कहँवा प् कान है ,
पढने की नाही देखो मदिरा की होड़ लगी ,माँ -बाप साथ बिटिया भी खिखियात है ,
बिटिया के दोस्त बने मम्मी के दोस्त आज ,दारु पीके खुद को बतावत सम्भ्रान्त्र  है ,
पिता संग पुत्र ,और पुत्री संग मातु तथा चीयर की होड़ खानदान में चलत है ,
गलती से कभी अगर आप बतलाएं उन्हें ,उत्तर मिलेगा प्रभु आप ही गलत हैं ,
मांस को खायेंगे साग जैसा नोच -नोच ,ऐसे में मंगल और शनि कैसे आता है ,
खाने को आप खा लें पूरा इंसान ही ,हम कहेंगे इसमें भगवान् का क्या जाता है ,
मानिए तो पुत्र ,पुत्री,भाई ,मित्र ,गोत्र ,नात ,अन्यथा तो पृथ्वी पे सारे ही पराये हैं ,
कुछ के लिए है यहाँ वेद और पुराण ग्रन्थ ,बहुतों ने खुद के धर्मपंथ बतलाये हैं ,
छुवाछूत  हरिजन की गर कभी अशुद्ध करे ,एक बार दुनिया में आँखे घुमाइये ,
ट्रेन ,बस ,मेला इन सबमे बचा के खुद को ,धन्य हो के तीन बार तीरथ नहाइये ,
गाड़ियों में बैठे -बैठे खुद के सामान लेना ,इस नये जमाने का नया सा प्रचलन  है ,
भाइयों मैं कहता वो केवल विक्रेता है ,नहीं है वो नौकर कहाँ का ये चलन है ,
स्वावलंबन की भाषा सीखनी तो सीख लीजै ,अपने कार्यों को स्वयं ही निपटाइये ,
और कभी जब अपने से मुक्ति मिले तो दुनिया में भी सामर्थ्य दिखलाइये ,
बद्दुआ और आह का न कार्य करें आप कभी ,मेरा सभी से विनम्र अनुरोध है ,
अपने लिए जो अनुचित लगे आपको,ऐसे कार्यों को कहिये आपका विरोध है ,
चाहे सुने मंत्रणा ,या चाहे दुनिया का सार ,सकारात्मक हमेशा मन को बनाइये ,
घृणित हो साम्राज्य या की घृणित निर्जीव कोई  ,उसमे भी सद्बुद्धि भाव अपनाइए ,
प्राणिमात्र,नारी ,और अंतिम कतार में जो ,उनको अब आगे की राह दिखलानी है ,
आज ही शपथ लीजै इनमे से किसी की भी करुणा कभी भी नहीं आपको दबानी है ,
'धीरज ' की प्रार्थना है ह्रदय से सुनो सुहृद,जहाँ भी रहो वहां रौशनी का डेरा हो ,
सूर्य जैसे आप सदा सबका संताप हरो ,दुनिया में चाहे कहीं कितना अँधेरा हो ,

आप सबकी प्रतिक्रिया एवं सुझाव का आकांक्षी -

        प्रणेता -
डॉ..धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र पत्रकार '






Thursday, October 3, 2013

हमारे देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है की इतने बड़े घोटाले में सिर्फ ५ साल की सजा और मात्र २५ लाख का जुर्माना  , करोड़ों करोड़ के मामले में केवल इतनी छोटी सजा और इतना हास्यास्पद जुर्माना ,आपको नहीं लगता की ये जनता का मजाक है ? अगर ऐसे ही होता रहा तो अपराधियों के हौसले उत्तरोत्तर  बुलंद हो जायेंगे ,घोटाले की धनराशि पर गौर करें तो इतने वर्षों में इससे कहीं अधिक ब्याज बनता है।  हम मुखौटे में खुश भले हो लें लेकिन ये ख़ुशी स्थायी नहीं होगी ,कहना न होगा की जल्द ही इससे प्रेरणा लेकर नए घोटालेबाज सामने आयेंगे ,और हमारी न्यायव्यवस्था कक्षपगति से जब अपना कार्य पूरा करेगी भी तो ऐसे की जैसे माननीयों ने कोई अपराध नहीं वरन गलती कर दी है,आपकी क्या राय है ??

Wednesday, October 2, 2013

कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 

वीर सपूत थे 'लाल  बहादुर 'भारत का उत्थान किया ,
भारत था गौरवान्वित फिर भी नहीं कभी गुणगान किया ,
पाकिस्तान को घर में रौंदा ,छोड़ के फिर एहसान किया ,
प्रेरणा लेकर कर लो पूजा ,पूजा घर की थाल से।
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 

नरमपंथ के बने पुरोधा ,सारी ख्याति भुनाई है ,
 गांधीमय ये देश देखकर ,मुझे हंसी ही आई है ,
आजादी भारत में आई भारत माँ  के लाल से !
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 

सचमुच थी वो नहीं दुर्घटना ,वो घटना सुनियोजित थी ,
देख 'लाल ' की निर्मम हत्या ,भारत माँ भी लज्जित थी ,
 हत्यारे शासक बन बैठे ,अपनी ओछी चाल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 


जिनके लहू देशहित निकले वो विद्रोही कहलाये ,
ह्रदय विदीर्ण  राष्ट्र का करके राष्ट्रपिता मन को  भाये  ,
सच्चाई क्या कहती थी खुद उनके नर कंकाल से ?
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 


बोस ,बहादुर ,वल्लभभाई ,या की फिर आजाद थे  ,
इनके लिए 'गांधी ' बतलाते ,इनके कार्य विवाद थे ,
नहीं बच सके नेक पुरोधा उस गांधी की चाल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 


उसी चाल को नित अपनाता गांधी नाम भुनाता है ,(वर्तमान शासन )
देशलूट कर गए विदेशी ,इनका नंबर आता है ,
लूट लिया ये राष्ट्र हमारा ,गिरी  नीति विकराल से ,
कभी नहीं तुम बच सकते हो दुःख ,शत्रु और काल से। 

प्रणेता -
डॉ.धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र  पत्रकार '

(काव्य और प्रणेता  के विचार सर्वथा निजी हैं और पुख्ता प्रमाणों पर आधारित भी। अगर किसी को इससे दुःख या समस्या होती है तो कृपया मुझे मित्रता सूची से पृथक कर दें ! आपकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी हूँ  )













 
कवि मित्र  सुरेश अलबेला जी की वाल से साभार 
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सन्देश दिया था,सत्य और शांति की रक्षा के लिए तलवार उठानी पड़ती है।राम धनुष के दम पर ही सीता लंका से वापस आती है।गांधीजी ने कहा था कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो।पर दुसरे पर भी मार दे तो ??? और बापू यहाँ पर लोग थप्पड़ नहीं,सीधे गोली मारते है,रीटेक का तो मौका ही नहीं मिलता।
जब रावण ने सीता जी का अपहरण किया था तो भगवान राम ने अंगद से कहा था-हे अंगद रावण को मेरा सन्देश पहुंचा दो वो सीता को सम्मान के साथ विदा कर दे मैं नहीं चाहता की असुरों का भी रक्तपात हो।पर रावण ने हठ नहीं त्यागी।और युद्द हुआ।अत्यधिक संयम और अहिंसा कायरता की श्रेणी में आतें है,हमारे राष्ट्र के पिता तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश है।गाँधी तो केवल एक भ्रम है,जिसका चश्मा पाश्चात्य संस्कृति के झूले में झूल रहे उन लोगों ने लगा रखा है जो ये समझते है की उन्हें आज़ादी भीख के कटोरे में मिली थी।अहिंसा की चादर हटाकर देखिये आज़ाद,भगत सिंह,मंगल पांडे,सावरकर,अशफाकुल्ला खां जैसे अनेक देशभक्तों की कुर्बानी की यादें उसी के नीचे दबा दी गई है।

यहाँ पर वे सारे कारण प्रस्तुत है जिसके कारण अधिकतर युवा गाँधी और गाँधी नीति के घोर विरोधी है।
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खल नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया। और जब इस नरसंहार को अपनी आँखों से देखने वाले शहीदे आज़म उधम सिंह ने लन्दन में जाकर डायर की छाती में गोलियां मारी तो गाँधी ने उधम सिंह को कातिल और पागल जैसे शब्दों से संबोधित किया।
भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।

गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप गुरू गोबिन्द सिंह,भगत सिंह,चन्द्र शेखर आज़ाद को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया।
२२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

Tuesday, October 1, 2013

खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

चल रही संकट की आंधी ,फिर भी जनता क्यूँ  न जागी ?
भ्रष्ट  केवल वो नहीं हैं ,हम भी हैं उसमे सहभागी ,
यदि अनीति राह आये उसको सब मिलकर  ढहाओ।
 खुद की चिंता छोड़ दो अब ,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

पाप धोते -धोते  गंगा ,अब प्रदूषण की निशानी ,
यमुना रुक दिल्ली में कहती क्या बचा है मुझमे पानी ?
शुद्ध कर लो मन प्रथम और घर में ही गंगा नहाओ। . 
 खुद की चिंता छोड़ दो अब ,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

मदिरा ,खैनी औ धुएं की लिखूं मैं कितनी कहानी ,
लील ली इन व्यसनों  ने ,जाने कितनों की जवानी 
शुद्ध सेवन ,शुद्ध भोजन खुद के अपने घर में खाओ। 
 खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

ज्ञान का व्यापार छोडो ,दान से उद्धार कर लो ,
पठन-पाठन के चलन से व्याप्त ये संसार कर लो ,
ज्ञान और विज्ञान से रोते ह्रदय को तुम  हंसाओ। 
 खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

हिन्दू -मुस्लिम -सिख और ईशा के भक्तो तुम बताओ ,
कौन पुस्तक कहती तुमसे ,खून की नदियाँ  बहाओ ,
धर्म  तो तादात्म्य केवल मनुजता के गीत गाओ। 
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

जाति  और विद्वेष नीति ,मजहबों को बांटती है ,
विविधता का रूप समझ ये मनुजता को काटती है ,
साथ मिलकर चलो फिर से मत मिटो खुद मत मिटाओ। 
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

विश्व की है ये विरासत नहीं केवल देश भारत ,
'विश्वगुरु ' का ताज लेकर रो रहा है आज भारत ,
सिद्ध कर दो फिर से मिलकर खोया गौरव फिर से लाओ।
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,


सबकी माँ में माँ ही देखो ,बहन में निज बहन पाओ ,
नारी की मातृत्व महिमा ,यूँ न दिल से तुम भुलाओ ,
हो न पुनरावृत्ति ऐसी ,मन में ऐसा प्रण बनाओ। (सन्दर्भ १६ दिसंबर दिल्ली )
खुद की चिंता छोड़ दो अब,राष्ट्र को आगे बढाओ ,

आप सबकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी -


       प्रणेता -
डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतन्त्र  पत्रकार '