आज शिक्षक दिवस के पावन पुनीत अवसर पर माता-पिता जी के अनन्तर जो नाम मैं स्मरण करना चाहूँगा उनमे प्रोफ़ेसर लक्ष्मीराज शर्मा (इ. वि.वि.),श्री ब्रह्मदत्त मिश्र ,प्रोफ़ेसर शंकर दयाल द्विवेदी (इ.वि.वि.),प्रोफ़ेसर हरिदत्त शर्मा (इ. वि.वि.),प्रोफ़ेसर के के श्रीवास्तव (इ. वि.वि.),प्रोफ़ेसर चण्डिका प्रसाद शुक्ल (बी.एच. यू.) और यहाँ फेसबुक की दुनिया में प्रोफ़ेसर हेमलता श्रीवास्तव ,प्रोफ़ेसर अरुण श्रीवास्तव ,डॉ गीता त्रिपाठी जी ,आदरणीय हुकुम सिंह जी ,प्रोफ़ेसर अमलदार नीहार जी ,एवं अनगिनत ऐसे गुरुवर जिनकी मैं व्याख्या नहीं कर सका उनका ह्रदय से आभारी हूँ ,की उन्होंने मेरे में ऐसे संस्कार प्रेषित किये जिससे मैं सभ्य समाज का अङ्ग बन सकूँ।
मेरे इन्ही गुरुओं में एक नाम परम आदरणीय श्री शेष नारायण जी मिश्र का भी है ,जिन्होंने मुझे हमेशा एक अनुज की तरह शिक्षित किया और मुझे मनसा ,वाचा,कर्मणा सदैव सफल और उपकारी होने की प्रेरणा दी।
प्रतिभा जैसा की आप जानते हैं दो प्रकार की होती है - १ -जन्मजात एवं दूसरी अर्जित की हुयी (श्रम व् शिक्षा द्वारा ) ये 'जन्मनाजायते ' वाली प्रतिभा के धनी हैं ,मेरी जानकारी में इनसे हजारों -हजार विद्यार्थियों ने शिक्षा ली होगी लेकिन इन्होने कभी किसी से धनार्जन नहीं किया और न ही किसी तरह का स्वार्थ रखा वह भी ऐसे समय में जब ये भी शोधार्थी थे (अर्थात अध्ययन ही कर रहे थे नौकरी नहीं !),अध्ययन ,अध्यापन के अतिरिक्त और कोई शौक मैंने इनके अन्दर मुखर होते हुए नहीं देखा , विशिष्ट बात यह भी है की जरूरत पड़ने पर इन्होंने कई छात्रों की आर्थिक सहायता भी करी ,मैं भी ऐसे छात्रों में से एक हूँ ……
माता -पिता , और शिक्षक का प्रतिदान कोई भी नहीं दे सकता ,जन्म जन्मान्तर तक नहीं !!!!!!!
आप सबको कोटि कोटि नमन !!!!
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