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Wednesday, September 4, 2013

 टिप्पणी के लिए आप   सभी आदरणीयों का प्रभूत आभार !
अगर हम निष्पक्ष रूप से जातिगत भावना से ऊपर उठकर विचार करें तो तमाम ऐसी विसंगतियाँ  मिलेंगी। 
काबिले गौर है की अभी भी मुस्लिम भाई बाल विवाह करते हैं ,न केवल बाल विवाह बल्कि बचपन से जिसे भाई संबोधन दिया जाता रहा हो जैसे -मौसेरा भाई ,फुफेरा भाई ,चचेरा भाई और अन्य नाते-रिश्तेदार  इन सबसे निकाह करना पड़ता है , ग्रामीण स्थिति यह है की उन्हें बुर्के में ही निकलना है कहीं भी सामान्य स्थिति में वे कहीं  नहीं निकल सकती हैं , यह रही  बात शिक्षा का भी कुछ ऐसा ही हाल है या तो इन्हें विद्यालय भेजा  नहीं जाएगा या फिर ये केवल मदरसे तक सीमित होंगी , कुछेक परिवार ही ऐसे हैं जो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा की तरफ अग्रसर होते देखना चाहते हैं और इसके लिए पूरा सहयोग देते हैं ,
अब मुख्य विषय तलाक़ , इस्लाम सात पत्नियाँ रखने की छूट  देता है। क्या यह उचित है ?
तलाक किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए तलाके हसन ,तलाके एहसन और तलाके- उल- बिद्दत 
तलाक  ए  राजी ,तलाके  बेन ,कुला ,फ़स्ख  ये कहीं भी हों किसी भी रूप में हों हमेशा दुःख का ही कारण  बनते हैं , इन्सान  सारी  कायनात का सबसे  बुद्धिमान प्राणी है  अतः उसे प्रणय सम्बन्धों  से पूर्व ही इन सबपे विचार कर लेना चाहिए , विवाहेत्तर निर्णय जो किसी के जीवन के समाप्त होने का कारण बने न केवल इनसे बचना चाहिए अपितु समाज में भी इनके विरुद्ध जागरूकता लानी चाहिए…………………. 

आप सबकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी हूँ !

आदरणीय हुकुम जी आपका मार्गदर्शन इस विषय पर विशेषतः अपेक्षित है ………… 

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