कृतज्ञ राष्ट्र शहीदे आजम -भगत सिंह को उनके जन्म दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है !
वह भी भारतवर्ष था ,यह भी भारतवर्ष ,)-परस्व
जगह -जगह पर हिंसा अब सिखलाई जाती है ,
शांति भंगियों को अब खीर खिलाई जाती है ,
दौड़ भाग कर उनसे हाथ मिलाया जाता है ,
बदले सेना का सर नित कटवाया जाता है ,
जनता मूर्ख बनी बैठी जब ,उसका क्यूँ न खून पियें ?
कही चमकती कोटि दीपिका ,कहीं भभकते छूंछ दिए ,
कहीं सहश्रों माल पुए की ,रही थालियाँ पंथ निहार ,
कहीं दिनों तक भूख मारकर रहता जीवन तार -तार,
कभी बनाते ठोस नियम अपराधी पाए सिंहासन ,
कभी उन्ही पर बाण चलाते उनके खुद ही अपने जन ,
हेम मैम ने बतलाया ये राष्ट्रपुत्र की बानी है ,
करके खुद की ही निंदा फिर अपनी जाति बखानी है ,
किये सहश्रों घोटाले फिर दिया भुभुक्षा का अधिकार ,
नहीं सुरक्षा हुई खाद्य की जन मानस कहता ललकार ,
ख़ूनी और बलात्कारी को देते हैं जो सिंहासन ,
कौन कहेगा होता है उनके अन्दर भी मानव तन ,
थे 'लाल बहादुर ' भारत के लाहौर तिरंगा फहराया ,
और 'मन्नू बाबा ' से केवल है वाच्य धर्म हमने पाया ,
निंदा करते बड़े जोर जब कभी वाक्य बाहर आते ,
नही गिरी मेरी मुद्रा(रूपया ) बस सत्तासीन गिरे जाते ,
अन्य पार्टियों में पाते थे जो दाना ,अब यहाँ पड़े ,
सत्ता में मदमस्त झूमते सोते हैं अब खड़े -खड़े ,
रामसेतु है मिथ्यकल्पना निश दिन हैं ये दुहराते ,
उसी सेतु का चित्र खीच के शोध तलक हैं करवाते (नासा )
अब कहते मोहन परासरन ,है राम सेतु सर्वथा सत्य ,
मालूम है उनको है प्रमाण ,हो सकता फिर कैसे असत्य ,
आर्य संस्कृति के द्योतक इस देशभूमि के हे वासी !
कर दो विरोध गर साहस है ,गर नहीं बने तुम सन्यासी ,
अनाचार को सहना भी करने जैसा घातक होता ,
प्रतिरोध नहीं करता जो रहता सदा वहीँ व्यक्ति रोता ,
उस देवतुल्य श्री भगत सिंह ने किया विरोध प्राण देकर ,
और हंसी भूमि ये मुक्तिमुग्ध हो ,उनको सदा मान देकर ,
उसी भक्ति के साधक हों हम देशभूमिहित जिए मरें ,
गर होता कहीं अनीतिकार्य हम खुलकर सुलभ विरोध करें ,
कोटिसहश्र नमन करता मैं भगत शहीद सा भाग्य मिले ,
नहीं चाहिए देवधूलि देशभक्ति का सौभाग्य मिले
ये रक्त ,मांस ये मनोदशा सब देशहिताय करूँ अर्पण ,
मिटटी से अपने रखूं प्रेम भक्तो को है शतकोटि नमन ,
लेखन हो सदा प्रेमपूरक जिसमे स्वदेश की मिले भक्ति ,
गर कभी जरूरत आन पड़े तो शस्त्र बने यह कलम शक्ति ,
प्रणेता -
डॉ धीरेन्द्र नाथ मिश्र 'धीरज '
'स्वतंत्र पत्रकार '
एक व्यंग्य लिखा था मैंने की इन्ही सबसे अर्थात आज की स्थितियों से क्षुब्ध होकर ही शायद शहीदे आजम भगत सिंह की आत्मा ने कहा था -
वीर भगत तुम कभी न लेना काया भारतवासी की ,
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की ,
उदहारण आप सबके सामने है -
हंस यहाँ भूखे मर रहे हैं बगुले कर रहे हैं राज
ऐसे भारत देश पर हम करते हैं नाज ,
हम करते हैं नाज कोई जाबांज नहीं है ,
कल की जैसी बात देखिये आज नही है ,
देखिये ये मित्र देश करते रहेंगे विध्वंश ,
और आप चुनते रहियेगा अपना नेता कंश ,
( उपर्युक्त दोनों काव्य केवल व्यंग्य हैं कृपया इन्हें देश से जोड़कर न देखें ! मेरा तात्पर्य केवल अनीति ,अन्याय ,अनाचार युक्त देश से है ,आर्यावर्त भारत से नहीं ! क्यूंकि इससे अच्छी और उपयुक्त जन्भूमि नहीं हो सकती ,भारत के सन्दर्भ में कश्मीर पर कही गयी ये लाइनें काबिले गौर हैं - "गर फिरदौस जमी असतो, अमी असतो! अमी असतो !!
"अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो यही है ! यही है !!
No comments:
Post a Comment