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Tuesday, September 3, 2013

आज  महाकवि भवभूति विरचित उत्तररामचरितम  का एक प्रसंग याद आ गया जिसमे भगवान  राम और जनकनंदिनी सीता आपस में वार्तालाप कर रहे हैं , श्री राम कहते हैं कि  "हे सीते ! तुम्हारा क्या प्रिय नहीं है अगर कुछ अप्रिय है तो वह है विरह !" ,उसी समय गुप्तचर की ध्वनि सुनाई देती है -"देव  उपस्थितोस्मि !" अर्थात मैं उपस्थित हूँ , यहाँ श्री राम की बात समाप्त होती है विरह शब्द के साथ और दूत के वाक्य की शुरुवात होती है विरह शब्द के साथ , तदनन्तर  दूत श्री राम को सीताविषयक  लोकापवाद की सूचना देता  है और श्री राम जगज्जननी  सीता को वन छोड़ने का आदेश सुनाते हैं  निष्कर्ष यह कि विरह के उल्लेख के अनन्तर ही वे विरहव्यथित भी होते हैं  .……………………… यह बात संस्कृत और हिन्दी  साहित्य में 'पताकास्थानक '(dramatic situation or dramatic irony)  से अभिसूच्य  होती है , जब आप किसी बात का कथन करें और वह घटित हो जाय तो यह  'पताकास्थानक ' कहलाती है।
प्रस्तुतागंतुभावस्य वस्तुतोन्योक्ति सूचितम।
पताकास्थानकं तुल्यसंविधान विशेषणम।।

आङ्ग्ल भाषा में इसे  dramatic situation or dramatic irony कहते हैं। 

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