इस संसार में मोह की शक्ति कितनी अपार है ? अग्नि की दाहशक्ति को न जानता हुआ पतंग दीपक में जा पड़े ,मछली अज्ञानवश कँटिये में लगे मांस को खा लेवे ,परन्तु हम (मनुष्य ) जानते हुए भी अनेक विपत्ति के फन्दों से व्याप्त विषयादि का परित्याग नही करते। आखिर विधाता की सर्वोत्तम कृति होने के बावज़ूद हम क्यूँ चेतनाशून्य हो जाते हैं ?
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