प्रेम क्या है ? कैसे है ? क्यों है ? इसे शब्दों में नही बयाँ किया जा सकता क्योंकि प्रेम विचार नही अनुभूति है ,प्रेम को समझने की ज़रूरत नही है इसे जीने की आवश्यकता है और इसे जीने के लिए स्वयं को भूलना पड़ेगा ;आपके दुर्गुण जब तक अपूर्ण नही होंगे तब तक प्रेम कदापि पूर्ण नहीं हो सकता ।
सत्य ही है-----
जा घट प्रेम न सञ्चरे ,सो घट जान मसान।
जैसे खाल लुहार की साँस लेतु बिन प्राण।
प्रेम बनिज नहीं कर सके, चढ़े न नाम की गैल|
मानुष केरी खोलरी, ओड फिरे ज्यों बैल ||
सत्य ही है-----
जा घट प्रेम न सञ्चरे ,सो घट जान मसान।
जैसे खाल लुहार की साँस लेतु बिन प्राण।
प्रेम बनिज नहीं कर सके, चढ़े न नाम की गैल|
मानुष केरी खोलरी, ओड फिरे ज्यों बैल ||
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