हर युग अपना नया विचार पैदा करता है जैसे गाँधी युग ,नेहरू युग ,जेपी युग,अन्ना युग आदि -आदि ;युग चला जाता है और विचार स्थापित हो जाता है ,आगे बढ़ता रहता है जब बोझिल होता है तो समाप्तप्राय भी होने लगता है। सबके विचारों के अपने तर्क हैं और आधार भी ;यहां धातव्य यह है कि कुछ विचार मिलते-जुलते और एक जैसे होते हैं जैसे देश की ज्वलंत समस्याओं पर निराकरण सम्बन्धी विचार। मेरे जीवनकाल में अन्ना आन्दोलन जैसा एकमत विचार नही दृष्टिगत हुआ ,आज भी हममे से कई सुधारों का ज्वालामुखी अन्दर लिए बैठे हैं पर सबसे बड़ी समस्या इस देश में है शुरुवात की ,आगे चलने की ; यहीं से हम मात खा जाते हैं और छोड़ देते हैं सोचना ,जैसा चल रहा है चलने दो। कभी बहुत वैचारिक ऊहापोह हुआ तो कुछ लिख दिया ,किसी से कह दिया अन्यथा मूकदर्शन ! आखिर इसका समाधान कब और कैसे होगा ?
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