इस सृष्टि में शरीर का ही जन्म होता है ,और शरीर की ही मृत्यु होती है ,शरीर के जन्म लेने पर ही 'अमुक' का जन्म होता है ,शरीर के छूटने पर ही 'अमुक' का निधन। शरीर के जन्मते ही नाम के साथ तादात्म्य और शरीर के छूटते ही तादात्म्य समाप्त। वह जो हमारे भीतर है जिसे हम जी रहे हैं , वह शरीर नही है ; जीवन है। जो इस मर्म से अनभिज्ञ है जीवित हुए भी मृत्यु में है ,और जो इस मर्म को जानता है वह मृत्यु में भी जीवन पा जाता है। आप जिस भी व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,जीव से रूबरू होते हैं आपका ही प्रतिबिम्ब होता है जो आपमें नहीं है उसे आप कहीं नही पा सकते। आपको जो भी पाना है पहले अपने भीतर खोजिए फिर बाहर।
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