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Tuesday, November 24, 2015

मेरा भी एक ख़ुदा है ,
जो नमकहरामी नही सिखाता ,
नही सिखाता है जिहाद ,
देश में बंटना और बाँटना भी नही सिखाता ,
देश में रहकर इसका मखौल बनाना  ,
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख, ईसाई का अन्तर बताना ,
चर्चों ,मस्जिदों,मन्दिरों व गुरुद्वारों में भेद भी नही सिखाता ,
सिखाता है अमन चैन से रहना
अपनी रोटी को बांटकर खाना ,
किसी के दुःख में खुद दुखी हो जाना ,
भले ही उसकी खुशियों में शरीकी का समय न मिले।

"करे यदि ईश फिर भी जन्म मेरा ,बना सेवक रहूँ मैं हिन्द तेरा ,
चाहे मरुभूमि या कि उर्वरा हो ,स्वजननी किन्तु भारत की धरा हो। "

"जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है ,
वह नर नही ,नरपशु निरा है ,और मृतक समान है। "

Saturday, November 21, 2015

ये सैफई के नाम पर सन्नाटा क्यों है भाई ?
देश को तुमने सांचों में बांटा क्यों है भाई ?
किसी के शौचालय की खबर बनी प्राइम टाइम ,
किसी को जरुरी ख़बरों से छांटा क्यों है भाई ?
कमाल का सेक्युलर देश और कमाल की है जनता,
पैसे के बिस्तर फिर भी बजट में घाटा क्यों है भाई ?




हमारी इच्छाएं व्यक्त हों पेड़ों की तरह ,
बरसात में जैसे वल्कल हो जाते हैं भारी और मोटे ,
जैसे पतझड़ में झरने लगते हैं पत्ते ,
जैसे फूल रंग जाते हैं बसन्त में ,
परिस्थितियां गुजरे हममे से ऋतुओं की तरह ,
हमें पौधे से पेड़ बनाते हुए ,
हरा हो -होकर लौटे हमारा पीलापन ,
जड़ें हमारी महसूस करें अपनी एक पत्ती का गिरना ,
एक -एक फूल का हंसना महसूस हो जाये।
न तरस के जियें हम ,न मरें अघा -अघा कर ,
रूढ़ियों से न हों स्थापित ,
विस्थापित न हों अनबरसे मेघों से ,
'बँटे समाज' की उंगलियों में थमा सकें एक लिपि ,
और लबार होने से बचा ले जाएं अपना यह अनूठा 'समय'.


Monday, November 2, 2015

सम्मान वापसी के विरोध में शुरू हुई मुहिम 'किताब वापसी अभियान' जादुई तरीके से बढ़ रही है जहाँ अभी तक इससे लगभग ४००० लोग जुड़ चुके हैं वहीँ मुख्यधारा मीडिया में भी इसकी खासी चर्चा है।  अभी तक ,लाइव हिन्दुस्तान ,राजस्थान पत्रिका ,हरिभूमि ,दैनिक ट्रिब्यून ,आईबीएन 7 और अनेकानेक समाचार पत्रों ,वेब पोर्टलों ने इसको प्रमुखता से कवर किया है।


Sunday, November 1, 2015

इस बार नया मीडिया मंच  शिवा जी महाराज की नगरी में दस्तक दे रहा है ,वर्धा विश्वविद्यालय एवं नया मीडिया मंच  के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में देश भर से मीडिया/सोशलमीडियाविदों के पहुँचने की उम्मीद है।  इस राष्ट्रिय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक १९ नवम्बर २०१५ ,गुरुवार  को होगा। स्थान रहेगा -हबीब तनवीर सभागार ,वर्धा (महाराष्ट्र ) . आप इस कार्यक्रम में सादर आमन्त्रित हैं। 

Friday, October 30, 2015

हमारे नौनिहालों का पाठ्यक्रम और उससे सम्बंधित कुछ वाक्य विमर्श की प्रतीक्षा में है।

आर्य भारत में बाहर से आये थे।
प्राचीन वैदिक हिन्दू गोमांस खाते थे।
शिवा जी पहाड़ी चूहा था।
गुरु तेग बहादुर लुटेरे थे।
वेद गोपड़ और गड़रियों के गीत हैं।
भारत एक उपमहाद्वीप है।

ऐसे अनेकानेक तथ्य हैं जिनमे -भारत की खोज ,भगत सिंह का शहीदी दर्जा ,विभिन्न आक्रमणकारियों का महिमामण्डन और हमारे वीर योद्धाओं का अपमान आदि विषय हैं। क्या इसमें संशोधन की आवश्यकता नहीं है ?
ये बारी आपकी है ,ये पारी आपकी है। जो विपक्ष में रहकर बोलते थे वहीँ आज भी बोलते रहेंगे तो कुछ हाथ नही आएगा। परिवर्तन और संशोधन मांग रहा है झूठा और आरोपित इतिहास ,इसे बदलिये। जो सच है ,जो अदृश्य है उसे सामने लाइए।  क्यूंकि अगर अब भी चूक गए तो फिर कभी नहीं बदल सकते आप इन झूठी बातों को। 

Wednesday, October 28, 2015

आदरणीय महाकवि भतृहरि कृत काव्य सन्ग्रह -अनुप्रेरणादायी 
आदरणीय भर्तृहरि कृत - जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः।
नास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम्॥१॥
प्रस्तावे हेतुयुक्तानि यः पठत्यविशङ्कित
ः।
स कविस्तानि काव्यानि काव्ये तस्य परिश्रमः॥२॥
सुकवेः शब्दसौभाग्यं सुकविर्वेत्ति नापरः।
कलादवन्न जानाति परः कङ्कणचित्रताम्॥३॥
सन्ति श्वान इवासंख्या जातिभाजो गृहे गृहे।
उत्पादका न बहवः कवयः शरभा इव॥४॥
कवयः परितुष्यन्ति नेतरे कविसूक्तिभिः।
न ह्यकूपारवत्कूपा वर्धन्ते विधुकान्तिभिः॥५॥



Thursday, October 22, 2015

रावण के वंशज बहुमत में ,ओ कवि ! चिल्लाकर क्या होगा ?
अन्याय संगठित हो बैठा पुतले सुलगाकर क्या होगा ?
जब शासक वल्कल पहनेगा ,वनवासी सामन पायेगा ,
कवि कहता है उस दिन रावण ,बिन मारे ही मर जायेगा।

तुम मुझे यूँ जला न पाओगे ,
मेरी दुनिया जली ,जला मैं भी 
फिर भी मुझको जला न पाओगे ………
सबसे पहले अपने अंदर के रावण को जलाइये फिर पुतला।
की टीम की तरफ से आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें। 
टीआरपी की रेस भी गजब की है भाई ,हमारे लेखक ,बुद्धिजीवी ,पत्रकार ,कलमकार सभी को फेम चाहिए। कोई भक्तिभाव में है तो कोई विरक्ति भाव में ,जो भक्तिभाव में है उनका तो फिर भी सही है परन्तु जो विरक्ति वाले हैं वो अपना स्टैण्ड एक बार क्लियर कर लें। कहीं केवल प्रसिद्धि वाला विरोध तो नहीं है ये ,अगर केवल प्रसिद्धि वाला है तो समझिए राई का पहाड़ है. ये भरभरा कर गिरेगा  और जब गिरेगा तो सब बेकार  हो जायेगा अतः या तो सशक्त विरोधी बनें या फिर समर्पित समर्थक। बीच वाला मामला टिकता नही गुरु । बाकी आपको जो ठीक लगे। 

Friday, April 17, 2015


Naya Media Manch इलाहाबाद में छात्रों के साथ हुई ज्यादती,बर्बरता और उनके खिलाफ दर्ज झूठे मकदमों की भर्त्सना करता है साथ ही मंच के सभी स्वयंसेवियों से छात्रहित में आन्दोलन के साथ खड़े होने का आह्वान भी करता है। धातव्य है की आन्दोलनरत छात्रों को जबरन मारपीट कर उनपर झूठे मुक़दमे दर्ज किये गए हैं ,प्रशासन प्रदेश सरकार के साथ छात्रों के उत्पीड़न में जुटा है। स्थानीय जनप्रतिनिधि अपना हित साधने में लगे हैं। आइये हम सब मिलकर इस आवाज़ को इतना बुलन्द करें कि इसकी गूँज पूरे देश में सुनाई दे। छात्र एकता जिन्दाबाद।

Friday, April 3, 2015

आज आआपा की  दिल्ली सरकार द्वारा अपनी उपलब्धियों का गुणगान देखा जिसमें यह बताया गया कि उन्होंने अपनी घोषणाओं में ९० प्रतिशत को पूरा किया साथ ही यह भी कि उन्होंने स्वाइनफ्लू को ख़त्म कर दिया अरे मेरे भाई ये आप जनता को उल्लू बना रहे हो या अपने आपको। भाई मैं तो ठहरा अज्ञानी और अल्पज्ञ थोड़ा आप सब ही इस पर प्रतिक्रिया दें कि स्वाइनफ्लू आआपा ने ख़त्म किया दिल्ली से  ?

Tuesday, March 17, 2015

बधाई ! अतुल मोहन सिंह जी के सफल संयोजन में तथा श्री शलभमणि त्रिपाठी जी के संरक्षण में सफलता की नई कहानी कहता 'नया मीडिया मंच ' प्रस्तुत है अतुल जी की रपट।
नया मीडिया पत्रकारिता का ही विराट स्वरूप
वक्ताओं ने वैकल्पिक पत्रकारिता को बताया लोकतांत्रिक ज़रूरत
लखनऊ में संपन्न हुआ राष्ट्रीय मीडिया विमर्श
प्रथम एस.एन. शुक्ल सम्मान-2015 से अलंकृत हुईं शिखा वार्ष्णेय
“नया मीडिया मंच” और “जर्नलिस्ट, मीडिया एंड फ़ोरम” की ओर से हुआ आयोजन
लखनऊ,15 मार्च, 2015.(वी.आई.एन.एन.) प्रदेश की राजधानी के लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान स्थित श्री अधीस स्मृति सभागार में एकदिवसीय राष्ट्रीय मीडिया विमर्श का आयोजन “नया मीडिया मंच” और “जर्नलिस्ट, मीडिया एंड राइटर्स फ़ोरम” द्वारा किया गया। इस दौरान ‘नया मीडिया के पत्रकारीय सरोकार’ और ‘वैकल्पिक पत्रकारिता और संभावनाओं का भविष्य’ जैसे विषयों पर सारगर्भित और विस्तार से पारिचर्चा हुई। कार्यक्रम के दौरान लन्दन प्रवासी प्रसिद्ध ब्लागर और श्रेष्ठ लेखिका शिखा वार्ष्णेय को हिन्दी पत्रकारिता और रचनाधर्मिता को समर्पित श्री सत्यनारायण शुक्ल स्मृति प्रथम श्रम साधना सम्मान-2015 ने नवाजा गया।
विमर्श के ‘नया मीडिया के पत्रकारीय सरोकार’ विषयक प्रथम विशेषज्ञ सत्र में बोलते हुए मानवाधिकार आयोग उत्तर प्रदेश के पूर्व सचिव और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे श्री संतोष द्विवेदी ने कहा कि नया मीडिया दरअसल जनोन्मुखी माध्यम है जिसमें किसी भी ख़बर को ख़ारिज नहीं किया जा सकता. मुख्यधारा से कट चुके आम आदमी की आवाज की मुखर अभिव्यक्ति को इसने आवाज़ दी है. लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि पत्रकारिता, जनसंचार की एक इकाई भर है सोशल मीडिया जनसंचार के स्वरूप को विस्तारित करती है. वह पूर्वाग्रह तोड़ती है और मीडिया को लोकतांत्रिक बनाती है. सोशल मीडिया एक यांत्रिक विकास की प्रक्रिया है जो पत्रकारिता के शास्वत मूल्य को बदल नहीं सकती. लन्दन प्रवासी लोकप्रिय ब्लॉगर और लेखिका और स्वतंत्र पत्रकार श्रीमती शिखा वार्ष्णेय ने कहा कि आज सोशल मीडिया कमाई का ज़रिया भी बन गया है. अगर आप अच्छा लेखन करते हैं तो उससे आर्थिक उपार्जन का रास्ता भी निकलता है. आपका लेखन मुख्यधारा में बड़े पैमाने पर कच्चे माल अर्थात सन्दर्भ सामग्री के तौर पर धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है. पत्रकारिता को किसी समय सीमा से बांधा नहीं जा सकता है। ब्लाग और सोशल मीडिया के जारिए अपनी बात कहने की आजादी किसी को कहीं भी है। सोशलमीडिया ऐसा मंच है जहाँ न केवल कार्यक्रम सीधे यूजर्स तक पहुँचते हैं बल्कि यूजर्स कार्यक्रमों में शामिल भी हो सकते हैं या अपनी राय प्रकट कर सकते हैं। उन्होने कहा कि इसे जागरूकता के साथ प्रयोग करने से एक सशक्त माध्यम बन सकता है। कोई भी माध्यम छोटा और बड़ा नहीं हो सकता।
विज्ञान पत्रकारिता विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ता और डेक्कन हेराल्ड के विशेष संवाददाता श्री संजय पाण्डेय ने बताया कि नया मीडिया आपको अभिव्यक्ति का एक आधार तो दे रहा है पर उसके कुछ संभावित खतरे हैं जिनका समाधान निकल पाना असंभव लगता है. भाषा, सामग्री के स्तर और किसी नियंत्रण या छन्नी का न होना चिंताजनक भी है. इस मौके पर आईबीएन-7 के राज्य ब्यूरो प्रमुख श्री शलभमणि त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि खबरों का कोई दायरा नहीं होता। अब तक जो दीवारें थीं वह गिर गईं. पत्रकरिता अब बंदिश नहीं है। हर आम आदमी पत्रकार है। इसमें सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही है। उन्होने कहा कि इंटरनेट का प्रयोग करने वाला लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़ा है। यह अभिव्यक्ति क‍हा नया माध्यम भी है। अब पत्रकारिता किसी जागीर नहीं है। इसमें आजादी है। दुनिया में हर एक चीज दूसरे से जुड़ी है और निर्भरशील है। हां सोशल मीडिया को अब कोई नकार नहीं सकता है। हर दूसरा व्यक्ति सोशल मीडिया को जरूरी फालो करता है। बस इसका सकारात्मक प्रयोग ही अच्छी सफलता है। सोशल मीडिया आज समाचार संगठनों के लिए आम पाठकों और दर्शकों से जुड़ने का एक जरिया बन चुका है। कादीपुर परास्नातक महाविद्यालय, सुल्तानपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील पाण्डेय ने कहा कि सोशल मीडिया का एक रूप आद्य पत्रकार नारद की कार्यशैली में भी मिलता रहा है हालांकि तब इंटरनेट नहीं था फ़िर भी लोग संदेशों और सूचनाओं का आदान-प्रदान प्रकृति के डाकियों की मदद से किया जाता किया करते थे. प्रसिद्ध लेखक और टिप्पणीकार शिवानंद द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नया मीडिया कोई संगठन या एनजीओ नहीं बल्कि यह आम आदमी को अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम देता है। इसके माध्यम से अपनी बात कहने का एक मंच प्राप्त होता है। इसके माध्यम से हर बात को सरल ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं. इसके जरिए से हम अपनी आजादी और बौद्धिक स्तर का सही प्रारूप प्रस्तुत कर सकते हैं। प्रथम सत्र का धन्यवाद प्रस्ताव नया मीडिया मंच के श्रीनिवास राय शंकर द्वारा प्रस्तुत किया गया.
‘वैकल्पिक पत्रकारिता और संभावनाओं का भविष्य’ विषयक दूसरे ओपन सत्र में मंच पर वरिष्ठ पत्रकार श्री कुमार सौवीर ने अपने सम्बोधन में कहा कि नया मीडिया के तौर पर प्रचारित किये जा रहे सोशल मीडिया को कभी भी वैकल्पिक पत्रकारिता का स्थान नहीं मिल सकता है। कारण यह कि यह सूचनाओं का माध्यम तो बन सकता है और बहु-माइंडसेट वर्चुअल संयंत्र बन सकता है लेकिन अधिकतम और पर्याप्त सूचनाओं का माध्यम नहीं। वह परंपरा सूचना माध्यमों की बेईमानी और तोड़-फोड़कर पेश की जा रही खबरों का भंडाफोड़ तो कर सकता है लेकिन सांगठित माध्यम का आकार नहीं। प्रवक्ता.काम के संपादक श्री संजीव सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि कहा कि मीडिया का काम केवल मनोरंजन करना और राजनीतिक खबरों तक ही सिमटकर नहीं रह जाना होता है, जैसा कि हमारा मुख्यजधारा का मीडिया करता है अपितु जनता को शिक्षित करना, कला-संस्कृाति-साहित्यु पर बात करना, वृहत्तिर समाज का भी जायजा लेना उसका एक प्रमुख दायित्व है, और यह कार्य वर्तमान समय में नया मीडिया कर रहा है। इसके साथ ही मैंने कहा कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में यूक्रेन के 'ऑरेंज रेवॉल्युाशन' से लेकर न्यूयार्क के 'अकुपाई वाल स्ट्री ट' तक, 'अरब स्प्रिंग' से लेकर 'अन्नाु आंदोलन' तक, नया मीडिया राजनीतिक परिर्वतन और लोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया को तेज कर रहा है। नया मीडिया पर संघी सक्रियता की आलोचना का मैंने प्रत्यु त्तार देते हुए कि अब तक मीडिया एक खास विचारधारा द्वारा पूर्वग्रह से ग्रस्तू रहा है इसलिए अब जब नया मीडिया के माध्येम से जन-अभिव्य क्ति हो रही है तो उसे इसे संघी सक्रियता के नाम से खारिज करने का षड्यंत्र हो रहा है। मैंने सुरेश चिपलूकर, पंकज कुमार झा, रवि शंकर आदि का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे तमाम राष्ट्रमवादी सोशल मीडिया एक्टिविस्टों के स्टेमट्स पढ़े जाएं तो पता चलेगा कि कितनी जिम्मे दारीपूर्वक अपनी बात कही जा रही है।
वरिष्ठ लेखक और ब्लॉगर श्री कश्यप किशोर मिश्र ने नया मीडिया की गंभीरता के बारे में बोलते हुए कहा कि थोड़ी देर पहले प्रथम सत्र में सिन्हा जी मंच पे थे और फिलहाल एकदम पीछे बैठकर हमारी बातें सुन रहें हैं । संजय भाई सामनें बैठें हैं, आचार्य जी भी श्रोताओं के बीच मौजूद हैं और शलभ भाई भी यहाँ बनें हुए हैं, सत्र की समाप्ति के साथ ये सारे लोग जा सकते थे, इन्होंने अपनी बात रख ली थी, पर ये सभी यहाँ मौजूद हैं, इनकी मौजूदगी इनके सरोकार को दर्शाती हैं । यह सरोकार ही है, जो अपनी बात हो जानें के बाद ये लोग दूसरों को सुनने के लिए यहाँ बैठे हैं, यही अंतर होता है, होनें और विशिष्ट होनें में, व्यक्ति विशिष्ट होता नहीं, क्रमिक रूप से विशिष्टता अर्जित करता है । सोशल मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है । "शब्द ब्रम्ह है, शब्द रूद्र हैं" ऐसा ऋगवेद में कहा गया है, अर्थात शब्द सर्जक भी है और शब्द विनष्ट भी करता है, तो यह आप पर है, आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल सृजन में करते हैं या विनाश में, आप इसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्टिव और डिस्ट्रक्टिव दोनों तरीके से कर सकते हैं, आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं, यह आपके सरोकार ही तय करेंगे । डिस्ट्रक्शन जरूरी नहीं, विनाशकारी ही हो, डिस्ट्रक्शन कंन्सट्रक्टिव डिसंट्रक्सन भी हो सकता है । रूद्र विनाशक हैं, पर उनके नाद से बस तांडव ही नहीं होता, रूद्र के नाद में महामृत्युंजय भी मौजूद है, लिहाजा डिस्ट्रक्शन में भी उसका भाव महत्वपूर्ण होता है ।
नई दिल्ली से आये लोकप्रिय सोशल मीडिया एक्टिविस्ट श्री प्रवीण शुक्ल बटोही ने कहा कि नया मीडिया को बिना किसी पूर्वाग्रह के देखने और प्रयोग करने की जरूरत है. आप हमारी उपस्थिति से असहज और असहमत हो सकते हैं पर ख़ारिज अथवा नजरंदाज नहीं कर सकते. नया मीडिया मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र ने सोशल मीडिया की भूमिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा की पाठ्य पुस्तकों में लम्बे समय से चल रहे अशुद्धियाँ और भ्रांतियाँ अब तर्कों द्वारा खंडित होने लगी हैं। अब लोग जस का पढ़ने के बजाय उस पर विमर्श करते हैं और यह नया मीडिया की वजह से संभव हुआ है। यह अंतिम पंक्ति के हर उस व्यक्ति का मंच है, जो वंचित हैं, शोषित है और न्याय की लड़ाई लड़ रहा है। इलाहाबाद से आमंत्रित वरिष्ठ पत्रकार और प्राध्यापक श्री रनीश जैन ने सोशल मीडिया की तुलना सामाजिक पितृत्व से की जिसमें उन्होंने बताया कि हम इसके माध्यम से एक आभासी ही सही सामाजिक अभिभावक कि निर्मित कर रहे हैं जिससे हमे लगभग हरेक समस्या पर बेहतर सुझाव और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है. लखनऊ के नंबर वन रेडियो जाकी श्री प्रतीक मेहरा ने कहा कि आज रेडियो को भी समय के साथ चलना पड़ रहा है वह भी अब दिखना चाहता है. इसी दिखने की जद्दोजेहद ने उसको सोशल मीडिया का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया है. आज हमारे लगभग सारे कार्यक्रम आन लाइन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इस सत्र में नया मीडिया के मिजाज के मुताबिक खूब विचारों का आदान-प्रदान हुआ। सवालों और जवाबों की झडि़या लग गईं। मुख्यजधारा के पत्रकारों ने नया मीडिया पर हमला बोलते हुए इसे कूड़ा-करकट बताया तो वेब मीडियाकर्मियों ने जोरदार शब्दों में नया मीडिया को जन-अभिव्‍यक्ति का सशक्तं माध्य म बताया।
कार्यक्रम को सफ़ल बनाने में राजधानी लखनऊ के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों द्वारा संचालित पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में अध्ययनरत विद्यार्थियों और उनके प्राध्यापकों का विशेष योगदान रहा. इसमें खासतौर से विज्ञान पत्रकारिता विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, डॉ. भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय, बीबीडी विश्वविद्यालय, लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, शिया महाविद्यालय, फीमिट्स इन्स्टीटयूट, एजाज़ रिज़वी कालेज आफ़ मॉस कम्यूनिकेशन, जहागीराबाद पत्रकारिता संस्थान सहित अन्य संस्थानों में अध्ययनरत तकरीबन 200 छात्रों ने प्रतिभाग किया. सभी प्रतिभागियों को आयोजन समिति की ओर से सहभागिता प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया. साथ ही लखनऊ में कार्यरत दर्जनों पत्रकार, जन संचारक, अधिवक्ता, प्राध्यापक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भी अपनी जीवंत उपस्थिति दर्ज कराई. इस राष्ट्रीय मीडिया विमर्श का संचालन और संयोजन श्री अतुल मोहन सिंह, शिवानन्द द्विवेदी सहर, सह संयोजन श्री ओमशंकर पाण्डेय द्वारा किया गया.
नया मीडिया मंच का उत्तर प्रदेश से प्रतिनिधित्व कर रहे उच्च न्यायालय इलाहाबाद के कानूनविद एवं सहज ,आकर्षक व्यक्तित्व के धनी जो न केवल कानून अपितु ज्योतिष ,सम-सामयिकी ,सामान्य अध्ययन ,राजनीति आदि विषयों पर भी अपने ज्ञान ,लेखन ,स्तम्भलेखन से छाये रहते हैं नया मीडिया मंच इलाहाबाद कार्यक्रम के संरक्षक रहे अग्रज श्रीनिवास शंकर राय को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! आपकी यशस्विता यूँ ही बढ़ती रहे। आप सपरिवार सुखी ,समृद्ध व दीर्घायु रहें।

Wednesday, March 11, 2015

नया मीडिया मंच का कारवां १७ नवम्बर २०१३ को देवरिया से प्रारम्भ होकर  क्रमशः इलाहाबाद ,गोरखपुर के बाद राजधानी लखनऊ पहुँच रहा है।  लखनऊ टीम ने इस विषय में एक बैठक कर कार्यक्रम के आयोजन आदि पर विमर्श भी किया।  केंद्रीय टीम  के साथ भाई  के आदेशानुसार मैं भी लखनऊ पहुँच रहा हूँ।  इस बार का कार्यक्रम कई मायनो में खास है।  भाई  जी का संयोजन ,अग्रज श्री  का संरक्षण तथा  आदि का आगमन कार्यक्रम को और शानदार बना रहा है।  आप भी आइये ,कार्यक्रम आपका ही है ,आपसे ही सम्बन्धित है। विस्तृत विवरण एवं  सादर आमन्त्रण संलग्न है। 

Saturday, February 7, 2015

रमण महर्षि अपना शरीर छोड़ रहे थे तभी उनके एक शिष्य ने रोना चीखना शुरू कर दिया ,रमण ने अपने नेत्र खोले और कहा , "क्या कारण है? तुम क्यों रो रहे हो ?" शिष्य ने कहा ,"भगवन् ! आप हमें छोड़कर जा रहे हैं यह असह्य  है। "  उस समय यद्यपि महर्षि रमण गले के कैंसर से पीड़ित थे और अत्यन्त पीड़ा का अनुभव कर रहे थे ,उनके लिए कुछ भी बोलना दुष्कर था फिर भी वह हँसे उन्होंने कहा ,"मैं कहाँ जा सकता हूँ ? मैं यहां उतना ही अधिक बना रहूँगा जितना कि अभी हूँ। तुम्हीं बताओ मुझे इस स्थान में कोई जगह ऐसी है जहाँ जाना हो ,यहाँ से कहीं भी तो नही जाना है।  मैं कैसे मर सकता हूँ ? जो मर सकता था (अहंकार ) वह पहले ही चला गया है।  यदि तुमने वास्तव में अपने हृदय में मुझे उतना स्थान दिया है तो हमेशा मैं पहले जितना ही बना रहूँगा। " चेतन कभी नही मरता …………… कभी भी नही …………… 

Friday, February 6, 2015

समुद्र की कभी मृत्यु नही होती ,केवल उठती-गिरती शोर मचाती लहरें आती हैं और चली जाती हैं।  एक बार भी लहर अगर ये सोच ले कि वह सागर से पृथक है तो उसे अतीव व्यग्रता होगी कि मृत्यु आ रही है ,वह आ रही है और रास्ते में है।  परन्तु जब वह यह जान ले कि मैं सागर से पृथक नही हूँ ,मै कैसे मर सकती हूँ ?  मरने के लिए मुझे पृथक होना पड़ेगा।  यदि मैं सागर के साथ हो जाऊं फिर मैं लहर जैसा रहूँ या नही क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि जो मेरे अन्दर है वह भी तो सागर ही है और इसका अस्तित्व मेरे न रहने पर भी रहेगा।  ठीक यहीं स्थिति मृत्यु की है जो हमें हमारे अस्तित्व के दर्शन कराती है।