बधाई ! अतुल मोहन सिंह जी के सफल संयोजन में तथा श्री शलभमणि त्रिपाठी जी के संरक्षण में सफलता की नई कहानी कहता 'नया मीडिया मंच ' प्रस्तुत है अतुल जी की रपट।
नया मीडिया पत्रकारिता का ही विराट स्वरूप
वक्ताओं ने वैकल्पिक पत्रकारिता को बताया लोकतांत्रिक ज़रूरत
लखनऊ में संपन्न हुआ राष्ट्रीय मीडिया विमर्श
प्रथम एस.एन. शुक्ल सम्मान-2015 से अलंकृत हुईं शिखा वार्ष्णेय
“नया मीडिया मंच” और “जर्नलिस्ट, मीडिया एंड फ़ोरम” की ओर से हुआ आयोजन
लखनऊ,15 मार्च, 2015.(वी.आई.एन.एन.) प्रदेश की राजधानी के लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान स्थित श्री अधीस स्मृति सभागार में एकदिवसीय राष्ट्रीय मीडिया विमर्श का आयोजन “नया मीडिया मंच” और “जर्नलिस्ट, मीडिया एंड राइटर्स फ़ोरम” द्वारा किया गया। इस दौरान ‘नया मीडिया के पत्रकारीय सरोकार’ और ‘वैकल्पिक पत्रकारिता और संभावनाओं का भविष्य’ जैसे विषयों पर सारगर्भित और विस्तार से पारिचर्चा हुई। कार्यक्रम के दौरान लन्दन प्रवासी प्रसिद्ध ब्लागर और श्रेष्ठ लेखिका शिखा वार्ष्णेय को हिन्दी पत्रकारिता और रचनाधर्मिता को समर्पित श्री सत्यनारायण शुक्ल स्मृति प्रथम श्रम साधना सम्मान-2015 ने नवाजा गया।
विमर्श के ‘नया मीडिया के पत्रकारीय सरोकार’ विषयक प्रथम विशेषज्ञ सत्र में बोलते हुए मानवाधिकार आयोग उत्तर प्रदेश के पूर्व सचिव और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे श्री संतोष द्विवेदी ने कहा कि नया मीडिया दरअसल जनोन्मुखी माध्यम है जिसमें किसी भी ख़बर को ख़ारिज नहीं किया जा सकता. मुख्यधारा से कट चुके आम आदमी की आवाज की मुखर अभिव्यक्ति को इसने आवाज़ दी है. लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि पत्रकारिता, जनसंचार की एक इकाई भर है सोशल मीडिया जनसंचार के स्वरूप को विस्तारित करती है. वह पूर्वाग्रह तोड़ती है और मीडिया को लोकतांत्रिक बनाती है. सोशल मीडिया एक यांत्रिक विकास की प्रक्रिया है जो पत्रकारिता के शास्वत मूल्य को बदल नहीं सकती. लन्दन प्रवासी लोकप्रिय ब्लॉगर और लेखिका और स्वतंत्र पत्रकार श्रीमती शिखा वार्ष्णेय ने कहा कि आज सोशल मीडिया कमाई का ज़रिया भी बन गया है. अगर आप अच्छा लेखन करते हैं तो उससे आर्थिक उपार्जन का रास्ता भी निकलता है. आपका लेखन मुख्यधारा में बड़े पैमाने पर कच्चे माल अर्थात सन्दर्भ सामग्री के तौर पर धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है. पत्रकारिता को किसी समय सीमा से बांधा नहीं जा सकता है। ब्लाग और सोशल मीडिया के जारिए अपनी बात कहने की आजादी किसी को कहीं भी है। सोशलमीडिया ऐसा मंच है जहाँ न केवल कार्यक्रम सीधे यूजर्स तक पहुँचते हैं बल्कि यूजर्स कार्यक्रमों में शामिल भी हो सकते हैं या अपनी राय प्रकट कर सकते हैं। उन्होने कहा कि इसे जागरूकता के साथ प्रयोग करने से एक सशक्त माध्यम बन सकता है। कोई भी माध्यम छोटा और बड़ा नहीं हो सकता।
विज्ञान पत्रकारिता विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ता और डेक्कन हेराल्ड के विशेष संवाददाता श्री संजय पाण्डेय ने बताया कि नया मीडिया आपको अभिव्यक्ति का एक आधार तो दे रहा है पर उसके कुछ संभावित खतरे हैं जिनका समाधान निकल पाना असंभव लगता है. भाषा, सामग्री के स्तर और किसी नियंत्रण या छन्नी का न होना चिंताजनक भी है. इस मौके पर आईबीएन-7 के राज्य ब्यूरो प्रमुख श्री शलभमणि त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि खबरों का कोई दायरा नहीं होता। अब तक जो दीवारें थीं वह गिर गईं. पत्रकरिता अब बंदिश नहीं है। हर आम आदमी पत्रकार है। इसमें सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही है। उन्होने कहा कि इंटरनेट का प्रयोग करने वाला लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़ा है। यह अभिव्यक्ति कहा नया माध्यम भी है। अब पत्रकारिता किसी जागीर नहीं है। इसमें आजादी है। दुनिया में हर एक चीज दूसरे से जुड़ी है और निर्भरशील है। हां सोशल मीडिया को अब कोई नकार नहीं सकता है। हर दूसरा व्यक्ति सोशल मीडिया को जरूरी फालो करता है। बस इसका सकारात्मक प्रयोग ही अच्छी सफलता है। सोशल मीडिया आज समाचार संगठनों के लिए आम पाठकों और दर्शकों से जुड़ने का एक जरिया बन चुका है। कादीपुर परास्नातक महाविद्यालय, सुल्तानपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील पाण्डेय ने कहा कि सोशल मीडिया का एक रूप आद्य पत्रकार नारद की कार्यशैली में भी मिलता रहा है हालांकि तब इंटरनेट नहीं था फ़िर भी लोग संदेशों और सूचनाओं का आदान-प्रदान प्रकृति के डाकियों की मदद से किया जाता किया करते थे. प्रसिद्ध लेखक और टिप्पणीकार शिवानंद द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नया मीडिया कोई संगठन या एनजीओ नहीं बल्कि यह आम आदमी को अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम देता है। इसके माध्यम से अपनी बात कहने का एक मंच प्राप्त होता है। इसके माध्यम से हर बात को सरल ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं. इसके जरिए से हम अपनी आजादी और बौद्धिक स्तर का सही प्रारूप प्रस्तुत कर सकते हैं। प्रथम सत्र का धन्यवाद प्रस्ताव नया मीडिया मंच के श्रीनिवास राय शंकर द्वारा प्रस्तुत किया गया.
‘वैकल्पिक पत्रकारिता और संभावनाओं का भविष्य’ विषयक दूसरे ओपन सत्र में मंच पर वरिष्ठ पत्रकार श्री कुमार सौवीर ने अपने सम्बोधन में कहा कि नया मीडिया के तौर पर प्रचारित किये जा रहे सोशल मीडिया को कभी भी वैकल्पिक पत्रकारिता का स्थान नहीं मिल सकता है। कारण यह कि यह सूचनाओं का माध्यम तो बन सकता है और बहु-माइंडसेट वर्चुअल संयंत्र बन सकता है लेकिन अधिकतम और पर्याप्त सूचनाओं का माध्यम नहीं। वह परंपरा सूचना माध्यमों की बेईमानी और तोड़-फोड़कर पेश की जा रही खबरों का भंडाफोड़ तो कर सकता है लेकिन सांगठित माध्यम का आकार नहीं। प्रवक्ता.काम के संपादक श्री संजीव सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि कहा कि मीडिया का काम केवल मनोरंजन करना और राजनीतिक खबरों तक ही सिमटकर नहीं रह जाना होता है, जैसा कि हमारा मुख्यजधारा का मीडिया करता है अपितु जनता को शिक्षित करना, कला-संस्कृाति-साहित्यु पर बात करना, वृहत्तिर समाज का भी जायजा लेना उसका एक प्रमुख दायित्व है, और यह कार्य वर्तमान समय में नया मीडिया कर रहा है। इसके साथ ही मैंने कहा कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में यूक्रेन के 'ऑरेंज रेवॉल्युाशन' से लेकर न्यूयार्क के 'अकुपाई वाल स्ट्री ट' तक, 'अरब स्प्रिंग' से लेकर 'अन्नाु आंदोलन' तक, नया मीडिया राजनीतिक परिर्वतन और लोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया को तेज कर रहा है। नया मीडिया पर संघी सक्रियता की आलोचना का मैंने प्रत्यु त्तार देते हुए कि अब तक मीडिया एक खास विचारधारा द्वारा पूर्वग्रह से ग्रस्तू रहा है इसलिए अब जब नया मीडिया के माध्येम से जन-अभिव्य क्ति हो रही है तो उसे इसे संघी सक्रियता के नाम से खारिज करने का षड्यंत्र हो रहा है। मैंने सुरेश चिपलूकर, पंकज कुमार झा, रवि शंकर आदि का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे तमाम राष्ट्रमवादी सोशल मीडिया एक्टिविस्टों के स्टेमट्स पढ़े जाएं तो पता चलेगा कि कितनी जिम्मे दारीपूर्वक अपनी बात कही जा रही है।
वरिष्ठ लेखक और ब्लॉगर श्री कश्यप किशोर मिश्र ने नया मीडिया की गंभीरता के बारे में बोलते हुए कहा कि थोड़ी देर पहले प्रथम सत्र में सिन्हा जी मंच पे थे और फिलहाल एकदम पीछे बैठकर हमारी बातें सुन रहें हैं । संजय भाई सामनें बैठें हैं, आचार्य जी भी श्रोताओं के बीच मौजूद हैं और शलभ भाई भी यहाँ बनें हुए हैं, सत्र की समाप्ति के साथ ये सारे लोग जा सकते थे, इन्होंने अपनी बात रख ली थी, पर ये सभी यहाँ मौजूद हैं, इनकी मौजूदगी इनके सरोकार को दर्शाती हैं । यह सरोकार ही है, जो अपनी बात हो जानें के बाद ये लोग दूसरों को सुनने के लिए यहाँ बैठे हैं, यही अंतर होता है, होनें और विशिष्ट होनें में, व्यक्ति विशिष्ट होता नहीं, क्रमिक रूप से विशिष्टता अर्जित करता है । सोशल मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है । "शब्द ब्रम्ह है, शब्द रूद्र हैं" ऐसा ऋगवेद में कहा गया है, अर्थात शब्द सर्जक भी है और शब्द विनष्ट भी करता है, तो यह आप पर है, आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल सृजन में करते हैं या विनाश में, आप इसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्टिव और डिस्ट्रक्टिव दोनों तरीके से कर सकते हैं, आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं, यह आपके सरोकार ही तय करेंगे । डिस्ट्रक्शन जरूरी नहीं, विनाशकारी ही हो, डिस्ट्रक्शन कंन्सट्रक्टिव डिसंट्रक्सन भी हो सकता है । रूद्र विनाशक हैं, पर उनके नाद से बस तांडव ही नहीं होता, रूद्र के नाद में महामृत्युंजय भी मौजूद है, लिहाजा डिस्ट्रक्शन में भी उसका भाव महत्वपूर्ण होता है ।
नई दिल्ली से आये लोकप्रिय सोशल मीडिया एक्टिविस्ट श्री प्रवीण शुक्ल बटोही ने कहा कि नया मीडिया को बिना किसी पूर्वाग्रह के देखने और प्रयोग करने की जरूरत है. आप हमारी उपस्थिति से असहज और असहमत हो सकते हैं पर ख़ारिज अथवा नजरंदाज नहीं कर सकते. नया मीडिया मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र ने सोशल मीडिया की भूमिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा की पाठ्य पुस्तकों में लम्बे समय से चल रहे अशुद्धियाँ और भ्रांतियाँ अब तर्कों द्वारा खंडित होने लगी हैं। अब लोग जस का पढ़ने के बजाय उस पर विमर्श करते हैं और यह नया मीडिया की वजह से संभव हुआ है। यह अंतिम पंक्ति के हर उस व्यक्ति का मंच है, जो वंचित हैं, शोषित है और न्याय की लड़ाई लड़ रहा है। इलाहाबाद से आमंत्रित वरिष्ठ पत्रकार और प्राध्यापक श्री रनीश जैन ने सोशल मीडिया की तुलना सामाजिक पितृत्व से की जिसमें उन्होंने बताया कि हम इसके माध्यम से एक आभासी ही सही सामाजिक अभिभावक कि निर्मित कर रहे हैं जिससे हमे लगभग हरेक समस्या पर बेहतर सुझाव और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है. लखनऊ के नंबर वन रेडियो जाकी श्री प्रतीक मेहरा ने कहा कि आज रेडियो को भी समय के साथ चलना पड़ रहा है वह भी अब दिखना चाहता है. इसी दिखने की जद्दोजेहद ने उसको सोशल मीडिया का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया है. आज हमारे लगभग सारे कार्यक्रम आन लाइन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इस सत्र में नया मीडिया के मिजाज के मुताबिक खूब विचारों का आदान-प्रदान हुआ। सवालों और जवाबों की झडि़या लग गईं। मुख्यजधारा के पत्रकारों ने नया मीडिया पर हमला बोलते हुए इसे कूड़ा-करकट बताया तो वेब मीडियाकर्मियों ने जोरदार शब्दों में नया मीडिया को जन-अभिव्यक्ति का सशक्तं माध्य म बताया।
कार्यक्रम को सफ़ल बनाने में राजधानी लखनऊ के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों द्वारा संचालित पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में अध्ययनरत विद्यार्थियों और उनके प्राध्यापकों का विशेष योगदान रहा. इसमें खासतौर से विज्ञान पत्रकारिता विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, डॉ. भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय, बीबीडी विश्वविद्यालय, लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, शिया महाविद्यालय, फीमिट्स इन्स्टीटयूट, एजाज़ रिज़वी कालेज आफ़ मॉस कम्यूनिकेशन, जहागीराबाद पत्रकारिता संस्थान सहित अन्य संस्थानों में अध्ययनरत तकरीबन 200 छात्रों ने प्रतिभाग किया. सभी प्रतिभागियों को आयोजन समिति की ओर से सहभागिता प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया. साथ ही लखनऊ में कार्यरत दर्जनों पत्रकार, जन संचारक, अधिवक्ता, प्राध्यापक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भी अपनी जीवंत उपस्थिति दर्ज कराई. इस राष्ट्रीय मीडिया विमर्श का संचालन और संयोजन श्री अतुल मोहन सिंह, शिवानन्द द्विवेदी सहर, सह संयोजन श्री ओमशंकर पाण्डेय द्वारा किया गया.