समुद्र की कभी मृत्यु नही होती ,केवल उठती-गिरती शोर मचाती लहरें आती हैं और चली जाती हैं। एक बार भी लहर अगर ये सोच ले कि वह सागर से पृथक है तो उसे अतीव व्यग्रता होगी कि मृत्यु आ रही है ,वह आ रही है और रास्ते में है। परन्तु जब वह यह जान ले कि मैं सागर से पृथक नही हूँ ,मै कैसे मर सकती हूँ ? मरने के लिए मुझे पृथक होना पड़ेगा। यदि मैं सागर के साथ हो जाऊं फिर मैं लहर जैसा रहूँ या नही क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि जो मेरे अन्दर है वह भी तो सागर ही है और इसका अस्तित्व मेरे न रहने पर भी रहेगा। ठीक यहीं स्थिति मृत्यु की है जो हमें हमारे अस्तित्व के दर्शन कराती है।
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