सर्वप्रथम हमारे आदरणीयों को सादर प्रणाम !!और साथी वर्ग को सप्रेम अभिवादन !!!!!
आज के दिन १३ अगस्त १९९७ को माननीय उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ लैंगिक समानता और गारंटी के बुनियादी मानव अधिकार के प्रभावी प्रवर्तन के लिए दिशा निर्देशों और मानदंडों को पालन करने का आदेश दिया ………………………. लेकिन ये आदेश ,आदेश ही रहा आज तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। …और केवल यही आदेश नहीं है जिसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया हमारी न्यायपालिका के अधिकतर आदेश ऐसे ही होते हैं जिनका पालन नहीं होता ,हमारे तीनों स्तम्भ आज बिलकुल ही हिले हुए हैं चाहे वो विधायिका हो ,चाहे कार्यपालिका हो या फिर न्यायपालिका ………………. जनता का विश्वास तीनों से ही उठ चुका है ,किसी भी गरीब के साथ चाहे जितना अन्याय हो जाए वह इन सबके सामने जाने से कतराता है ………… क्यूंकि काफी हद तक इनकी कार्यशैली भी ऐसी ही है जिससे जरूरत मंद आश न लगा सके …………. हमने चौथे स्तम्भ से संबोधन दिया हमारी मीडिया को लेकिन बड़े ही दुःख का विषय है की हमारा मीडिया भी आशाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा …………… अधिकतर मीडिया हाउसेज या तो बिक चुके हैं या किसी राजनेता /विदेशी की संस्था के रूप में काम कर रहे हैं ये तो हो गया शहर का हाल गाँव के पत्रकार बंधुओं में अधिकतर मैट्रिक भी नहीं पास हैं और यहाँ -वहाँ की दलाली ही उनका मुख्य पेशा है , ऐसे में वे कलम के जोर पर कैसे कुछ कर सकते हैं ……………….
मैं अपने मुख्य विषय पर आता हूँ यौन उत्पीड़न …………। आज हमारे देश का दुर्भाग्य कह लीजिये या फिर गन्दा चलन जिसके कारण आये दिन ऐसी ख़बरें अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर जगह बनती हैं ,आखिर हमारी माँ -बहनों को केवल भोग की वस्तु क्यूँ मान लिया गया है ??? वो दिन -दोपहर-रात्रि में अकेले चलने में असुरक्षा क्यूँ महसूस करती हैं ??? सहकर्मियों के साथ कार्य करने में भी वो सहमी सी क्यूँ रहती हैं ?? इसके पीछे हमारा पुरुष प्रधान समाज कहाँ तक जिम्मेदार है ??? और हम स्वयं जवाबदेही से क्यूँ बचते हैं ……………। अपनी माँ बहन के लिए सम्मान और दूसरों के लिए अपशब्द संबोधन आज - कल बहुतायत प्रचलन में है ,एक बात याद रखने योग्य है की जब आप किसी नारी का अपमान या उससे छीटाकशी करते हो तो आप तो केवल थोड़ी देर का मनोरंजन कर लेते हो परन्तु वो नारी ह्रदय (जो मातृसत्ता का द्योतक भी होता है ) एकदम से तार -तार हो जाता है उन्हें अपने आस -पास के हर पुरुष से डर लगने लगता है …………………. ये सब समझता हर कोई है लेकिन जान बूझ कर समझने का प्रयास नही करता ,क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी नारी ने ऐसी अभद्रता का परिचय दिया हो समाज में ?? खुले आम समाज में या सड़क पर किसी पुरुष को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया हो जब वे ऐसा नहीं करती तो आप क्यूँ दानवों जैसा व्यवहार करते हो , आपसे समाज स्वामी विवेकानन्द ,दयानन्द सरस्वती जैसी उम्मीद नहीं रखता केवल इतनी रखता है की आप नारियों को सम्मान देना सीखे ,ये चाहे जिस रूप में हों या जहाँ भी हों ………… कुछ लोग नारियों के पहनावे की बात करते हैं मेरा तर्क है की आपके सामने से जैसे विदेशी महिलायें गुजरती हैं तो आप सोचते हैं ये तो इनका पहनावा ही है इसपे क्या सोचें ,इसी प्रकार जो स्वदेशी होकर भी विदेशी जैसी दिखनी चाहिती हैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिये आप केवल अपनी चित्तवृत्ति स्थिर रखिये , सबके प्रति सम्मान रखिये ऐसी मेरी प्रार्थना है , मैं इतना योग्य नहीं हूँ कि आप सबके समक्ष प्रवचन दे सकूँ लेकिन मन में विचार आया सो प्रकट कर दिया ………………. आप सबके तर्क और सुझाव आमंत्रित हैं ……………
आज के दिन १३ अगस्त १९९७ को माननीय उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ लैंगिक समानता और गारंटी के बुनियादी मानव अधिकार के प्रभावी प्रवर्तन के लिए दिशा निर्देशों और मानदंडों को पालन करने का आदेश दिया ………………………. लेकिन ये आदेश ,आदेश ही रहा आज तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। …और केवल यही आदेश नहीं है जिसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया हमारी न्यायपालिका के अधिकतर आदेश ऐसे ही होते हैं जिनका पालन नहीं होता ,हमारे तीनों स्तम्भ आज बिलकुल ही हिले हुए हैं चाहे वो विधायिका हो ,चाहे कार्यपालिका हो या फिर न्यायपालिका ………………. जनता का विश्वास तीनों से ही उठ चुका है ,किसी भी गरीब के साथ चाहे जितना अन्याय हो जाए वह इन सबके सामने जाने से कतराता है ………… क्यूंकि काफी हद तक इनकी कार्यशैली भी ऐसी ही है जिससे जरूरत मंद आश न लगा सके …………. हमने चौथे स्तम्भ से संबोधन दिया हमारी मीडिया को लेकिन बड़े ही दुःख का विषय है की हमारा मीडिया भी आशाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा …………… अधिकतर मीडिया हाउसेज या तो बिक चुके हैं या किसी राजनेता /विदेशी की संस्था के रूप में काम कर रहे हैं ये तो हो गया शहर का हाल गाँव के पत्रकार बंधुओं में अधिकतर मैट्रिक भी नहीं पास हैं और यहाँ -वहाँ की दलाली ही उनका मुख्य पेशा है , ऐसे में वे कलम के जोर पर कैसे कुछ कर सकते हैं ……………….
मैं अपने मुख्य विषय पर आता हूँ यौन उत्पीड़न …………। आज हमारे देश का दुर्भाग्य कह लीजिये या फिर गन्दा चलन जिसके कारण आये दिन ऐसी ख़बरें अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर जगह बनती हैं ,आखिर हमारी माँ -बहनों को केवल भोग की वस्तु क्यूँ मान लिया गया है ??? वो दिन -दोपहर-रात्रि में अकेले चलने में असुरक्षा क्यूँ महसूस करती हैं ??? सहकर्मियों के साथ कार्य करने में भी वो सहमी सी क्यूँ रहती हैं ?? इसके पीछे हमारा पुरुष प्रधान समाज कहाँ तक जिम्मेदार है ??? और हम स्वयं जवाबदेही से क्यूँ बचते हैं ……………। अपनी माँ बहन के लिए सम्मान और दूसरों के लिए अपशब्द संबोधन आज - कल बहुतायत प्रचलन में है ,एक बात याद रखने योग्य है की जब आप किसी नारी का अपमान या उससे छीटाकशी करते हो तो आप तो केवल थोड़ी देर का मनोरंजन कर लेते हो परन्तु वो नारी ह्रदय (जो मातृसत्ता का द्योतक भी होता है ) एकदम से तार -तार हो जाता है उन्हें अपने आस -पास के हर पुरुष से डर लगने लगता है …………………. ये सब समझता हर कोई है लेकिन जान बूझ कर समझने का प्रयास नही करता ,क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी नारी ने ऐसी अभद्रता का परिचय दिया हो समाज में ?? खुले आम समाज में या सड़क पर किसी पुरुष को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया हो जब वे ऐसा नहीं करती तो आप क्यूँ दानवों जैसा व्यवहार करते हो , आपसे समाज स्वामी विवेकानन्द ,दयानन्द सरस्वती जैसी उम्मीद नहीं रखता केवल इतनी रखता है की आप नारियों को सम्मान देना सीखे ,ये चाहे जिस रूप में हों या जहाँ भी हों ………… कुछ लोग नारियों के पहनावे की बात करते हैं मेरा तर्क है की आपके सामने से जैसे विदेशी महिलायें गुजरती हैं तो आप सोचते हैं ये तो इनका पहनावा ही है इसपे क्या सोचें ,इसी प्रकार जो स्वदेशी होकर भी विदेशी जैसी दिखनी चाहिती हैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिये आप केवल अपनी चित्तवृत्ति स्थिर रखिये , सबके प्रति सम्मान रखिये ऐसी मेरी प्रार्थना है , मैं इतना योग्य नहीं हूँ कि आप सबके समक्ष प्रवचन दे सकूँ लेकिन मन में विचार आया सो प्रकट कर दिया ………………. आप सबके तर्क और सुझाव आमंत्रित हैं ……………
यत्र नार्यन्स्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।।
अर्थ = जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमण करते हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सारे कार्य निष्फल होते हैं ।
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