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Sunday, August 11, 2013

आज  मन   उद्द्विग्न  था  बहुत  कि  हमारे आस - पास  विचरण करने वाले ,हम पर  आश्रित रहने वाले जीव जंतुओं पर कुछ  लिखा जाए  अतः अपने विचार प्रस्तुत कर  रहा  हूँ  , आपका  सुझाव एवं शिकायत शिरोधार्य करूंगा ,अगर आपने उचित प्रतिक्रिया दी तो ……………………………।


सृष्टिकर्ता /विधाता /गॉड /ईश्वर /अल्लाह ………प्रकृति इत्यादि  ने हमारे लिए और हमारे जीवन यापन के लिए  विविध प्रकार की सामग्रियाँ / वनस्पतियाँ  बनायीं ,इसी प्रकार से उन  तमाम जीवों के लिए  भी जो विधाता की इस सृष्टि में विचरण करते हैं ,फिर  ऐसा क्यूँ होता  कि हम इनकी जान के भूखे हो जाते हैं ? समस्त जीवों और  जंतुओं में मानव सबसे समझदार माना गया है फिर मानव  …… दानव जैसे कृत्य क्यूँ करता है  ……………………. जीव हत्या को कौन सा धर्म / मजहब  या शास्त्र  उचित ठहराता  है ???  जब हमारे जीवन में कोई दखल नहीं देता है तो हम अनायास केवल अपनी क्षुधा पूर्ती के लिए इनके प्राण क्यूँ ले लेते हैं ?????   और महत्त्वपूर्ण बात ये है की अगर हम जीवन दे नहीं सकते तो लेने का क्यों और कैसे अधिकार मिल गया हमें ??  अब आप कहेंगे की हम तो मारते नहीं जीवों को हम तो सिर्फ खाते हैं तो जीव को मारना और मरे हुए जीव को खाना एक ही बात है  ……………. आप हमारे सत्य सनातन  हिन्दू धर्म को देखें  इसमें हर प्राणी की पूजा का विधान है चाहे वह जिस किसी भी योनि में हो.……। पशु ,पक्षी सब किसी न किसी देवी देवता से सम्बद्ध हैं हमारे धर्म में.……. ऐसा इसलिए है की इनका भी जीवन जीने का अधिकार है   …………… हमारे आपके लिए समस्त  दुनिया बनायीं विधाता ने और इनके लिए इनके लायक स्थान  ऐसा  कदापि  नहीं है की इनके स्थान हमारे लिए किसी प्रकार की असुविधा उत्पन्न करते हैं  …………। फिर ऐसा जघन्य अपराध क्यूँ। ……………… आप चाहे  जो खाइए इतनी बड़ी सृष्टि में मनाही थोड़े है किसी चीज की, क्या जीव जंतु ही बचे हैं आपके लिए , अगर  आज आप उनकी   निर्मम तरीके से हत्या कर दे रहें हैं और उन्हें खा रहे हैं तो शायद आपका ये हिंसात्मक रवैय्या कल को मानवमात्र  के लिए भी हानिकारक हो जाए , इसमें कतिपय संदेह नहीं है। ……. आप गौर करेंगे तो देखेंगे की जो व्यक्ति इन सबसे सम्बद्ध होगा उसके अन्दर रजस और तामस  गुण का आधिक्य होगा ………… ऐसे लोग किसी भी समय निर्मम हो सकते हैं किसी के भी प्रति ……………खाने के लिए अगर ऐसी ही चीजें खानी हैं तो आजकल बाजार में कृत्रिम  चीजें उपलब्ध हैं जो बिना किसी को हानि पहुंचाए  प्राप्त की जा सकती हैं। ………………फिर जीव हत्या का विकल्प ही क्यूँ   …………। गोमाता जिन्हें हम मातृसत्ता का द्योतक मानते हैं आजकल  इनकी भी सरेआम हत्या जोरों पर है , न केवल जोरों पर  अपितु  वर्तमान में सबसे ज्यादा आंकड़ा गो हत्या का ही है ,जबकि ये जगजाहिर है की अगर आप धर्म के  नाम पर इन्हें गोमाता  नहीं स्वीकार सकते तो इनके गुणों पर आप मजबूर होक आप इन्हें मातृसत्ता  मान ही लेंगे क्यूंकि  जो औषधीय गुण  गाय के दुग्ध ,घी ,दही,छाछ ,मूत्र ,गोबर इत्यादि में है  वो इस धरा पर कहीं और सर्वथा असंभव है  ………………।
बाकी मन तो मन है इसके अनुसार अगर आप चलेंगें तो विनाश सुनिश्चित है  अतः इसे अपने अनुसार चलाइये   …………………………।  सत्य ही है कि   ………………
मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर ,
मन के मत चलिए नहीं पलक पलक मन और  ………………. 

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