श्री कृष्णजन्माष्टमी की कोटिश शुभकामनाएँ !!!!!
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
श्रीमद्भागवत , भविष्यपुराण, अग्नि आदि पुराणों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , बुधवार , रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था |
साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्तलोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमीसहित अष्टमीमें भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णवलोग सप्तमी का किन्चिनमात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । वैष्णवों में उदयाव्यापिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं ,इस दिन केले के खंभे , आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घरका द्वार सजाया जाता है । दरवाजे पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करे । रात्रिमें भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्रामजी को विधिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से विष्णु पूजन करना चाहिऐ । ‘ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘
कृष्ण मन्त्र :: ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा । ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् । श्रीकेशवाय नमः । नारायणाय नमः । माधवाय नमः । गोविंदाय नमः । विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः ।…..
श्रावण कृष्ण अष्टमीपर जन्माष्टमीका उत्सव मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
श्रीमद्भागवत , भविष्यपुराण, अग्नि आदि पुराणों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , बुधवार , रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था |
साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्तलोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमीसहित अष्टमीमें भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णवलोग सप्तमी का किन्चिनमात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । वैष्णवों में उदयाव्यापिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं ,इस दिन केले के खंभे , आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घरका द्वार सजाया जाता है । दरवाजे पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करे । रात्रिमें भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्रामजी को विधिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से विष्णु पूजन करना चाहिऐ । ‘ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘
कृष्ण मन्त्र :: ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा । ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् । श्रीकेशवाय नमः । नारायणाय नमः । माधवाय नमः । गोविंदाय नमः । विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः ।…..
श्रावण कृष्ण अष्टमीपर जन्माष्टमीका उत्सव मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।
आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है ।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सवकी पवित्रता भंग होती है । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।
गोपीचंदन: `गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तकपर गोपिचंदन लगानेकी प्रथा है
`कलिसंतरणोपनिषद् श्रीकृष्णयजुर्वेदांतर्गत है व इसे `हरिनामोपनिषद्' भी कहते हैं । द्वापरयुगके अंतमें ब्रह्मदेवने यह उपनिषद् नारदको सुनाया । इसका सारांश यह है कि, नारायणके नाम मात्रसे कलिदोष नष्ट होते हैं । यह नाम निम्न सोलह शब्दोंसे बना है -
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
यह सोलह शब्द जीवके जन्मसे लेकर मृत्युतककी सोलह कलाओंसे (अवस्थाओंसे) संबंधित हैं एवं यह मंत्र आत्माके चारों ओर मायाके आवरणका, अर्थात् जीवके आवरणका नाश करता है, ऐसा उपनिषद कहता है । कुछ कृष्णसंप्रदायी मंत्रके दूसरे चरणका उच्चारण प्रथम करते हैं व तत्पश्चात् पहले चरणका करते हैं ।'
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