बहुत सैर की अपने भारत की मैंने ,
मगर कुछ मजा आज़ादी का न देखा ,
गरीबों के मुख में निवाला नहीं है ,
और चैनों सुकूँ से भी सोते न देखा ,
है जनता की बेचारगी कितनी अच्छी ,
बगावत का कोई भी शोला न देखा ,
है सहती है ,सहती है , सहती ही रहती है ,
ये दृश्य केवल अपने भारत में देखा ,
ये (नेता) चलने न देंगे ,ये खाने न देंगे ,
ये बच्चों को स्कूल जाने न देंगे ,
जब हमारे हैं जाबाँज सीमा पे कटते ,
शहादत भी उनकी मनाने न देंगे ,
मगर सब्र सेना -औ -जनता का देखो ,
बगावत का कोई भी चारा न देखा ,
जन्मभूमि ,जनता ,जनार्दन के मायने ,
ये जनता के सेवक इन्होने न देखा ,
नहीं रह गया मीठा सम्बन्ध भारत !,
किसी देश से ऐसा पहले न देखा ,
दबा दे रहा है चाहे जितना हो छोटा ,
कि 'भारत ' को भी भारत जैसा न देखा ,
गुलामी और परतन्त्रता का नमूना ,
अभी देख लो जैसा पहले न देखा ,
न बहनें सुरक्षित ,न बेटी सुरक्षित ,
तो माँ कैसे होगी सुरक्षित बतायें ?
न सेना सुरक्षित ,न जनता सुरक्षित ,
सरेआम सेना का सर ये (पी.एम. ) कटायें ,
इनकी ये जनतानवाजी का आलम ,
मुझे लगता पहले कभी भी न देखा ,
हुआ पहले से ही भारत का विखंडन ,
नया दौर जारी हुआ जा रहा है ,
जो पहले सुरक्षित था सेना के हाथों ,(हमारी जमीन )
वो सरकार द्वारा दिया जा रहा है (चीन -पाकिस्तान द्वारा अधिग्रहीत भूमि )
स्वदेशी जमीने विदेशी हैं बनती ,
स्वदेशी ये पैसा किधर जा रहा है ,
न कीमत स्वदेशी की अब रह गयी है ,
विश्वविख्यात चीजों का कुनबा ढहा जा रहा है ,
जो शानें बढाती थीं भारत की पहले ,
वो चीजें विदेशों से अब आ रही हैं ,
किसानों की दिन-रात की जो कमाई ,
गोदामों में वो तो सड़ी जा रही है ,
पाक के लिए ,
रिश्ते सुधारो ,ये रिश्ते सुधारो ,
ये सरकार केवल रटे जा रही है ,
पाकिस्तान की सेना का रुख तो देखो ,
ये भारत से अब तो सटे आ रही है ,
न लो इम्तहाँ ,सब्र की भी है सीमा ,
की इसके सिवा कोई चारा न देखा ,
(पाक )तिरी कूटनीति का ये (मनमोहन )पी. एम. कदरदां ,
तूने तमाशा बनाकर तमाशा न देखा ,
पर पाक सुनो की ये मृत्यु तुम्हारी ,
एक दिन होके रहेगी भारत के हाथों ,
बुझने से पहले बहुत है भभकता ,
हर दीप का एक सन्देश भाँपो ,
सो तेज पकड़ लो जितना भी ये समय नहीं आएगा फिर ,
ये महाकाल का रूप बनाकर भारत ही खायेगा फिर (क्यूंकि तुम्हारा जन्मदाता यही है )
अब करो प्रार्थना मित्रों तुम सेना को फिर से धार मिले ,
नपुंसकों की बहुत हो गयी ,वीरों की सरकार मिले। ……………
आधुनिक लोकतंत्र में जनता /लेखक सबकी परतन्त्रता के बावजूद ……….
भारतीय स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!!!!
उन वीरों को नमन जिन्होंने हँसते -हँसते भारत देश के लिए अपने प्राण दे दिए !
कृतज्ञ राष्ट्र हार्दिक आभार के साथ उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
और ये संकल्प की हम कलम को ही अपनी तलवार बनाकर ये जंग जारी रखेंगे स्वतन्त्रता के लिए
……………….
खुशबू जिन्दा है तो समझो की चमन जिन्दा है ,
फूल को चाहने वालों का चलन जिन्दा है ,
वक़्त की साँस भी थम जाए मगर हाथों में ,
कलम जिन्दा है तो समझो की वतन जिन्दा है …
वन्दे भारत मातरम् ! जय हिन्द !! जय माँ भारती !!!
डॉ. डी. एन. मिश्रा 'धीरज'
मगर कुछ मजा आज़ादी का न देखा ,
गरीबों के मुख में निवाला नहीं है ,
और चैनों सुकूँ से भी सोते न देखा ,
है जनता की बेचारगी कितनी अच्छी ,
बगावत का कोई भी शोला न देखा ,
है सहती है ,सहती है , सहती ही रहती है ,
ये दृश्य केवल अपने भारत में देखा ,
ये (नेता) चलने न देंगे ,ये खाने न देंगे ,
ये बच्चों को स्कूल जाने न देंगे ,
जब हमारे हैं जाबाँज सीमा पे कटते ,
शहादत भी उनकी मनाने न देंगे ,
मगर सब्र सेना -औ -जनता का देखो ,
बगावत का कोई भी चारा न देखा ,
जन्मभूमि ,जनता ,जनार्दन के मायने ,
ये जनता के सेवक इन्होने न देखा ,
नहीं रह गया मीठा सम्बन्ध भारत !,
किसी देश से ऐसा पहले न देखा ,
दबा दे रहा है चाहे जितना हो छोटा ,
कि 'भारत ' को भी भारत जैसा न देखा ,
गुलामी और परतन्त्रता का नमूना ,
अभी देख लो जैसा पहले न देखा ,
न बहनें सुरक्षित ,न बेटी सुरक्षित ,
तो माँ कैसे होगी सुरक्षित बतायें ?
न सेना सुरक्षित ,न जनता सुरक्षित ,
सरेआम सेना का सर ये (पी.एम. ) कटायें ,
इनकी ये जनतानवाजी का आलम ,
मुझे लगता पहले कभी भी न देखा ,
हुआ पहले से ही भारत का विखंडन ,
नया दौर जारी हुआ जा रहा है ,
जो पहले सुरक्षित था सेना के हाथों ,(हमारी जमीन )
वो सरकार द्वारा दिया जा रहा है (चीन -पाकिस्तान द्वारा अधिग्रहीत भूमि )
स्वदेशी जमीने विदेशी हैं बनती ,
स्वदेशी ये पैसा किधर जा रहा है ,
न कीमत स्वदेशी की अब रह गयी है ,
विश्वविख्यात चीजों का कुनबा ढहा जा रहा है ,
जो शानें बढाती थीं भारत की पहले ,
वो चीजें विदेशों से अब आ रही हैं ,
किसानों की दिन-रात की जो कमाई ,
गोदामों में वो तो सड़ी जा रही है ,
पाक के लिए ,
रिश्ते सुधारो ,ये रिश्ते सुधारो ,
ये सरकार केवल रटे जा रही है ,
पाकिस्तान की सेना का रुख तो देखो ,
ये भारत से अब तो सटे आ रही है ,
न लो इम्तहाँ ,सब्र की भी है सीमा ,
की इसके सिवा कोई चारा न देखा ,
(पाक )तिरी कूटनीति का ये (मनमोहन )पी. एम. कदरदां ,
तूने तमाशा बनाकर तमाशा न देखा ,
पर पाक सुनो की ये मृत्यु तुम्हारी ,
एक दिन होके रहेगी भारत के हाथों ,
बुझने से पहले बहुत है भभकता ,
हर दीप का एक सन्देश भाँपो ,
सो तेज पकड़ लो जितना भी ये समय नहीं आएगा फिर ,
ये महाकाल का रूप बनाकर भारत ही खायेगा फिर (क्यूंकि तुम्हारा जन्मदाता यही है )
अब करो प्रार्थना मित्रों तुम सेना को फिर से धार मिले ,
नपुंसकों की बहुत हो गयी ,वीरों की सरकार मिले। ……………
आधुनिक लोकतंत्र में जनता /लेखक सबकी परतन्त्रता के बावजूद ……….
भारतीय स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!!!!
उन वीरों को नमन जिन्होंने हँसते -हँसते भारत देश के लिए अपने प्राण दे दिए !
कृतज्ञ राष्ट्र हार्दिक आभार के साथ उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
और ये संकल्प की हम कलम को ही अपनी तलवार बनाकर ये जंग जारी रखेंगे स्वतन्त्रता के लिए
……………….
खुशबू जिन्दा है तो समझो की चमन जिन्दा है ,
फूल को चाहने वालों का चलन जिन्दा है ,
वक़्त की साँस भी थम जाए मगर हाथों में ,
कलम जिन्दा है तो समझो की वतन जिन्दा है …
वन्दे भारत मातरम् ! जय हिन्द !! जय माँ भारती !!!
डॉ. डी. एन. मिश्रा 'धीरज'
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