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Friday, August 30, 2013

"विश्वगुरू भारत की गुणगान कथा "

लक्ष्य विहीन जीवन जीने से, अच्छा  तो मर जाना है ,
बार-बार की असफलता से, सफल लक्ष्य को पाना है ,
हम थके नहीं हम झुके नहीं ,अब हम तो बढ़ते जायेंगे ,
सर्वस्व न्यौछावर कर देंगे, पर विजय श्री को पायेंगे,
अपनी धरती पे लगा दाग, हम खुद ही इसे मिटायेंगे,
और देशभूमि को फिर से, सोने की चिड़ी बनायेंगे ,
सपनो का भारत विश्वविजय, भारत का गौरव बना रहे ,
हो विश्वगुरू फिर से भारत, यह लक्ष्य सदा ही अड़ा  रहे ,
हो दिगदिगन्त तक हे भारत !, बस तेरी ही गुणगान कथा ,
सब कुछ सूना तेरे आगे, है अन्य किसी का मान वृथा ,
फिर से बन पाता  स्वर्णचिड़ी , तो होता विश्वगुरू  भारत ,
सारी  दुनिया पर बुद्धिविजय ,जग में फिर से उठता भारत ,
है ज्ञानी और मनीषी से , जिस भारत का इतिहास भरा ,
ज्योतिषविद और अंकविद्या का, सागर भी है आज हरा ,
वो शूल्बसूत्र  (geometry) हम ही लाये ,इस दुनिया के हर कोने में ,
पाणिनि का वैय्याकरण ज्ञान ,है अलख सुहागा सोने में ,
शत वैद्य चिकित्सक की विद्या से, भरा देश का वेद  पुराण ,
हर शैल्य चिकित्सा की तो , भारत था जैसे अतुल खान ,
सब हार मानते थे जिससे ,वो रोग मिटाता था भारत ,
हर रोग बीमारी को छोडो ,अज्ञान मिटाता था भारत ,
थे दूर देश के राजनृपति,  भारत के चरण कमल धोते ,
पर हाय आज का समय चक्र ,हम चले गये सब कुछ खोते ,
था भारत मेरा जगतगुरू ,थे शिल्पी और दुर्ग बड़े -बड़े ,
पर आज उसी भारत में ,हैं बचे- खुचे कुछ दुर्ग खड़े ,
रामसेतु ,मंदिर दक्षिण का,करता है यशगान सदा ,
है कला और कौशल्यसिद्धि में ,किससे पीछे भारत की अदा ,
वो दर्शन और साहित्य ज्ञान ,भारत में इनका हुआ जन्म ,
जग को सिखलाया इसी देश ने गणित और प्रत्येक मर्म ,
पर हाय समय की मार ,भारत भी आज मिटता  सा है ,
दुनिया में होकर पीछे ,अरमानों में घटता सा है ,
जिस भारत ने थी सिखलाई ,दुनिया को प्यारी प्रेम रीति ,
उस भारत को ही मिलती है ,दुनिया से ओछी कूटनीति ,
है भारत की कोशिश , विकसित राष्ट्र बन जाने की ,
अपनी शक्ति को अखिल विश्व को फिर से दिखलाने की ,
बदला है नहीं पूरा भारत ,है  बच्चे में अभी राम ,
सीता की प्रतिमा बालाएं ,हैं कोमल मन के धाम ,
भारत में नहीं बदला वो धर्म ,और कर्म का नित ही ध्यान ,
पर आज देश में पनप रहा है ,मनुज बीच अज्ञान ,
हे मनुज ! खोल ले आँख ,तू अपने भीतर झाँक ,
वरना ये तेरी कुटिल बुद्धि, कर देगी तुझको राख ,
फिर से अपना ले देश भूमि का धर्म आज ,
ये कर्म है इससे कभी न सकता तू अब भाग ,
दुनिया में दिखला दे सबको, ये देश तेरा था जगद्गुरू ,
हर देश हमारा अनुचर था ,तुम करो रीति फिर से ये शुरू ,
भारत को फिर से जगद्गुरु, बना ही दोगे  कह दो !,
या तो अपने इस देहचर्म  को, इसी समय तुम तज  दो !,
है रीति सदा से भारत की, दुनिया में कोई भी रेर  न हो ,
सब जियें औ शांति से जीने दें, कैसी भी कोई अन्धेर  न हो ,
निष्ठा  और सच्ची देशभक्ति, हर भारतीय की आदत हो ,
हर भारतीय अपने कर्मों में , भले छोड़ सब कुछ रत हो ,
हे भारत देश प्रणाम तुझे !,तू इस सृष्टि का जगद्गुरू ,
तेरे वंदन से मेरे देश ,होती है कविता सदा शुरू ,
तेरे माटी  की धूलि सदा ,हम सरमाथे से लगाते हैं ,
वीर शहीद तेरी मिट्टी  में , अमरधाम को पाते हैं,
तेरी रक्षा में रत होकर ,जिस देशभक्त के जाते प्राण ,
उस महावीर का नमन सदा ,करते हम उर से सम्मान ,
हम भारतीयों  की इच्छा है  ,बन जाए सपनों का भारत ,
चाहे ये जीवन जाए फिर , हम रहें सदा इस प्रण में रत ,
हे आर्यावर्त तुझे मेरा ,बारम्बार प्रणाम है ,
तेरी छाया में मेरी काया पले ,हर जन्म में ये अरमान हैं ,
है 'धीरज ' की इच्छा ये सदा,बलि जाऊं मैं इस मातृभूमि पर
मिल जाएगा मुझको अतुल सुख , गर जाएँ प्राण इस कर्मभूमि पर  ………………।


प्रणेता - डॉ. धीरेन्द्र नाथ मिश्र  'धीरज '
copyright@DR.D.N.MISHRA

गहन चिंतन और उद्वेलित मन का परिणाम है यह रचना , आप सबकी प्रतिक्रिया एवं सुझाव सादर आमन्त्रित  हैं !










Tuesday, August 27, 2013

श्री कृष्णजन्माष्टमी  की कोटिश शुभकामनाएँ  !!!!!


वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||


 श्रीमद्भागवत , भविष्यपुराण, अग्नि आदि पुराणों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , बुधवार , रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था |
साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्तलोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमीसहित अष्टमीमें भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णवलोग सप्तमी का किन्चिनमात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । वैष्णवों में उदयाव्यापिनी  अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं ,इस दिन केले के खंभे , आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घरका द्वार सजाया जाता है । दरवाजे पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करे । रात्रिमें भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्रामजी को विधिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से विष्णु पूजन करना चाहिऐ । ‘ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ 
कृष्ण मन्त्र  :: ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा । ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्‍नो कृष्णः प्रचोदयात्‌ । श्रीकेशवाय नमः । नारायणाय नमः । माधवाय नमः । गोविंदाय नमः । विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः ।…..
श्रावण कृष्ण अष्टमीपर जन्माष्टमीका उत्सव मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।
आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है ।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सवकी पवित्रता भंग होती है । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।
गोपीचंदन: `गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तकपर गोपिचंदन लगानेकी प्रथा है 
`कलिसंतरणोपनिषद् श्रीकृष्णयजुर्वेदांतर्गत है व इसे `हरिनामोपनिषद्‌' भी कहते हैं । द्वापरयुगके अंतमें ब्रह्मदेवने यह उपनिषद् नारदको सुनाया । इसका सारांश यह है कि, नारायणके नाम मात्रसे कलिदोष नष्ट होते हैं । यह नाम निम्न सोलह शब्दोंसे बना है -
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
यह सोलह शब्द जीवके जन्मसे लेकर मृत्युतककी सोलह कलाओंसे (अवस्थाओंसे) संबंधित हैं एवं यह मंत्र आत्माके चारों ओर मायाके आवरणका, अर्थात् जीवके आवरणका नाश करता है, ऐसा उपनिषद कहता है । कुछ कृष्णसंप्रदायी मंत्रके दूसरे चरणका उच्चारण प्रथम करते हैं व तत्पश्चात् पहले चरणका करते हैं ।'

Tuesday, August 20, 2013

रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार 2012 में रक्षाबन्धन गुरुवार2 अगस्त को मनाया गया। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं।हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है। येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।

प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दीचावलदीपकमिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्मपुराणइतिहाससाहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता "मातृभूमि वन्दना" का प्रकाशन हुआ जिसमें वे लिखते हैं-
"हे प्रभु! मेरे बंगदेश की धरती, नदियाँ, वायु, फूल - सब पावन हों;
है प्रभु! मेरे बंगदेश के,प्रत्येक भाई बहन के उर अन्तःस्थल, अविछन्न, अविभक्त एवं एक हों।"
(बांग्ला से हिन्दी अनुवाद)
सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग करके वन्दे मातरम् के आन्दोलन से भड़की एक छोटी सी चिंगारी को शोलों में बदल दिया। 16 अक्तूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षा बन्धन की योजना साकार हुई और लोगबाग गंगा स्नान करके सड़कों पर यह कहते हुए उतर आये-
"सप्त कोटि लोकेर करुण क्रन्दन, सुनेना सुनिल कर्ज़न दुर्जन;
ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल, आमि स्वजने राखी बन्धन।"

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है।
महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।[ इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है। यही कारण है कि इस एक दिन के लिये मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं।
राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी औरभस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधतीगणपतिदुर्गागोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है।
तमिलनाडुकेरलमहाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं। इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत। व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं।[
राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा करबृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ई विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने वामन अबतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।
महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं।महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तान्त भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई

अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है।[26] मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन। पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबन्धन' नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्‍म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्‍म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्‍म में राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- "राखी धागों का त्‍यौहार"। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्‍म बनायी थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्‍म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्‍म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फ़िल्‍म 'रक्षाबन्धन' नाम की भी बनायी थी। 

भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं। ये लिफाफे अन्य लिफाफों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिजाइन भी अलग है जिसके कारण राखी इसमें ज्यादा सुरक्षित रहती है। डाक-तार विभाग पर रक्षाबन्धन के अवसर पर 20 प्रतिशत अधिक काम का बोझ पड़ता है। अतः राखी को सुरक्षित और तेजी से पहुँचाने के लिए विशेष उपाय किये जाते हैं और काम के हिसाब से इसमें सेवानिवृत्त डाककर्मियों की सेवाएँ भी ली जाती है। कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिये अलग से बाक्स भी लगाये जाते हैं। इसके साथ ही चुनिन्दा डाकघरों में सम्पर्क करने वाले लोगों को राखी बेचने की भी इजाजत दी जाती है, ताकि लोग वहीं से राखी खरीद कर निर्धारित स्थान को भेज सकें। आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। 


 और  अंततोगत्त्वा  जैसा कि प्रिय मित्र सुनील जी ने आप  लोगो को बताया 


काफी लोग कंफ्यूज है की रक्षाबन्धन कब है ?

चलो हम बता देते हैँ

हिन्दू पंचाग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन (भद्राकाल रहित समय में) रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है ! इस वर्ष 2013 में रक्षा बंधन का त्यौहार 20 और 21 अगस्त को मनाया जाएगा !

हिन्दू पंचाग के अनुसार पूर्णिमा तिथि 20 अगस्त, 2013 को सुबह 10:22 से प्रारंभ हो जाएगी, लेकिन इस दिन सुबह 10:22 मिनट से लेकर रात्रि 20:49 तक भद्राकाल रहेगा !

मान्यता है कि भद्राकाल के समय राखी बांधना अशुभ होता है इसलिए रक्षाबंधन का त्यौहार 20 अगस्त को 8:49 pm से शुरु होकर 21 अगस्त को सुबह 11 बजे तक चलेगा !

21 अगस्त को सुबह 7:15 मिनट के बाद का समय राखी बांधने के लिए अति शुभ है

Sunday, August 18, 2013

तलाक तो दे रहे हो, गुरुर-ए-कहर के साथ....
मेरा शबाब [जवानी]
भी लौटा दो..
मेरी मेहर के साथ.
- मशहूर पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर

परवीन शाकिर के शौहर ने निकाह के दस साल के बाद एक दूसरी लडकी के साथ निकाह करने के लिए
परवीन शाकिर को तलाक....तलाक..तलाक कहकर तलाक दे
दिया था ... फिर उन्होंने अपनी नज्मो से इस्लाम के इस सिस्टम के खिलाफ
आवाज बुलंद की ... बाद में कुछ लोगों  ने उनकी कार का एक्सीडेंट करके हत्या कर दी थी

Saturday, August 17, 2013

विनम्र और अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि नेता जी सुभाषचन्द्र  बोस को !!

आपने हमें अपना खून देके आजादी दी लेकिन ये राष्ट्र आपकी शहादत तक के साक्ष्य सुरक्षित रख पाने में असमर्थ रहा है !!!
 हम शर्मिंदा हैं अपने इस कृत्य के लिए   ……………………। 

बड़े ही दुर्भाग्य और दंश का सूचक है आज का दिन क्यूंकि आज के दिन ही हमारी आजादी के महानायक  नेता जी सुभाषचन्द्र  बोस  का शहादत दिवस है ( दुर्भाग्य का सूचक इसलिए क्यूंकि उनकी शहादत के कारणों पर आज भी हमारे साक्ष्य मौन हैं  . सुभाषचन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया था. भारत को आजाद कराने में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका काफी अहम थी. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. सुभाषचंद्र बोस युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं. उनके जीवन का संघर्षों भरा सफर और उनके द्वारा देश को स्वतंत्र कराने के प्रयासों को एक अमर-गाथा के रूप में जाना जाता है.

आज उनके शहादत दिवस  पर रंगून में दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण का स्मरण आवश्यक है. उन्होंने कहा था, “स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है. आप ने आजादी के लिए बहुत त्याग किए हैं, किंतु अपनी जान की आहुति अभी बाकी है. मैं आप सबसे एक चीज मांगता हूं और वह है खून. दुश्मन ने हमारा जो खून बहाया है, उसका बदला सिर्फ खून से ही चुकाया जा सकता है. इसलिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा. इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं. वे आगे आएं जिनकी नसों में भारतीयता का सच्चा खून बहता हो. जिसे अपने प्राणों का मोह अपने देश की आजादी से ज्यादा न हो और जो आजादी के लिए सर्वस्व त्याग करने के लिए तैयार हो.”

Subhash chader boseनेताजी सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. पिता शहर के मशहूर वकील थे. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए नेताजी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया. बोस द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा देश का राष्ट्रीय नारा बन गया.

आजाद हिन्द फौज (Azad Hind Fauj )
सुभाष चन्द्र ने सशस्त्र क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की तथा ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया. इस संगठन के प्रतीक चिह्न एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था.

आजाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना वर्ष 1942 में हुई थी. कदम-कदम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा – इस संगठन का वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे.

आजाद हिंद फौज के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई. इस फौज में न केवल अलग-अलग सम्प्रदाय के सेनानी शामिल थे, बल्कि इसमें महिलाओं का रेजिमेंट भी था.

मौत भी थी रहस्यमयी
कभी नकाब और चेहरा बदलकर अंग्रेजों को धूल चटाने वाले नेताजी की मौत भी बड़ी रहस्यमयी तरीके से हुई. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी को नया रास्ता ढूंढ़ना जरूरी था. उन्होंने रूस से सहायता मांगने का निश्चय किया था. 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे. इस सफर के दौरान वे लापता हो गए. इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिए. 23 अगस्त, 1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी कि 18 अगस्त के दिन नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम सांस ली. लेकिन आज भी उनकी मौत को लेकर कई शंकाए जताई जाती हैं.

हमारे वीर महापुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता, अखण्डता को कायम रखा जिसके लिए आने वाली पीढ़ी उनके योगदान को हमेशा याद रखेगी. नेताजी की सूझबूझ और साहस का सानी इतिहास में कोई नहीं मिलता. उनमें साहस और बुद्धि दोनों का मेल था. एक बेहद बुद्धिमान दिमाग की वजह से ही वह इतने प्रभावशाली थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देखते ही खत्म करने का निर्णय लिया था.

आप सबको भी ये कटु सत्य पता है की मूल रूप में हमारी आजादी के महानायक कौन थे ??
लेकिन हम किसके स्मरण में श्रद्धा अवनत होते हैं ??
देश के महामहीम / प्रधानमन्त्री /नेतागण  किसकी समाधि पे जाकर सर झुकाते हैं ??
आज नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के नाम पर कितनी परियोजनाएं चल रही हैं ??
आप सबकी तो नहीं कह सकता लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि  अगर ऐसे ही व्यवस्था चलती रही तो जल्द  ही हमें भी नेता जी के नक़्शे कदम पे चलने को मजबूर होना पड़ेगा , अगर ऐसे ही सीमा पर पाकिस्तान ,चीन हमारे वीर सैनिकों का सर काटते  रहे,  उन पर गोलियां  चलाते रहे तो फिर से आजाद हिन्द फ़ौज की जरुरत आन पड़ेगी। (क्यूंकि ये निकम्मी सरकारें ऐसे ही हमारी सेना का हाथ और मनोबल दोनों ही बाँध के रखेंगी ) …… और मुझे ऐसा प्रतीत होता है की इसकी आवश्यकता दिन - प्रतिदिन बलवती होती जा रही है ????
आप सबकी राय और सलाह का आकांक्षी हूँ !!!!

Thursday, August 15, 2013

 हमारे  फेसबुक  परिवार के समस्त बुद्धिजीवियों को हार्दिक बधाई कि  मित्र और दलित लेखक बुद्धिजीवी  श्री  कँवल भारती जी के खिलाफ  यू.पी. सरकार की मनमानी कार्यवाही को संज्ञान में लेते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय  ने सरकार से जबाब माँगा है ,कम से कम इससे ही सही हमारी कलम की ताकत को संबल तो मिलेगा  …………………………सादर आभार माननीय  उच्चतम न्यायालय  का !!!!!

Wednesday, August 14, 2013

बहुत सैर की अपने भारत की मैंने ,
मगर कुछ मजा आज़ादी  का न देखा ,
गरीबों के मुख में निवाला नहीं है ,
और चैनों सुकूँ  से भी सोते न देखा ,

है जनता की बेचारगी कितनी अच्छी ,
बगावत का कोई भी शोला न देखा ,
है सहती है ,सहती है , सहती ही रहती है ,
ये दृश्य केवल अपने भारत में देखा ,

ये (नेता) चलने न देंगे ,ये खाने न देंगे ,
ये बच्चों को स्कूल जाने न देंगे ,
जब हमारे हैं जाबाँज  सीमा पे कटते ,
शहादत भी उनकी मनाने न देंगे ,

मगर सब्र सेना -औ -जनता का देखो ,
बगावत का कोई भी चारा न देखा ,
जन्मभूमि ,जनता ,जनार्दन के मायने ,
ये जनता के सेवक इन्होने न देखा ,

नहीं रह गया मीठा सम्बन्ध भारत !,
किसी देश से ऐसा पहले न देखा ,
दबा दे रहा है चाहे जितना हो छोटा ,
कि 'भारत ' को भी भारत जैसा न देखा ,
गुलामी और परतन्त्रता  का नमूना ,
अभी देख लो जैसा पहले न देखा ,

न बहनें सुरक्षित ,न बेटी सुरक्षित ,
तो माँ  कैसे होगी सुरक्षित बतायें ?
न सेना सुरक्षित ,न जनता सुरक्षित ,
सरेआम सेना का सर ये (पी.एम. ) कटायें  ,
इनकी ये जनतानवाजी  का आलम ,
मुझे लगता पहले कभी भी न देखा ,

हुआ पहले से ही भारत का विखंडन ,
नया दौर जारी हुआ जा रहा है ,
जो पहले सुरक्षित था सेना के हाथों ,(हमारी जमीन )
वो सरकार द्वारा दिया जा रहा है (चीन -पाकिस्तान द्वारा अधिग्रहीत भूमि )
स्वदेशी जमीने  विदेशी हैं बनती ,
स्वदेशी ये पैसा किधर जा रहा है ,
न कीमत स्वदेशी की अब रह गयी है ,
विश्वविख्यात चीजों का कुनबा ढहा जा रहा है ,

जो शानें बढाती थीं भारत की पहले ,
वो चीजें विदेशों से अब आ रही हैं ,
किसानों की दिन-रात की जो कमाई ,
गोदामों में वो तो सड़ी जा रही है ,

पाक के लिए ,

रिश्ते सुधारो ,ये रिश्ते सुधारो ,
ये सरकार केवल रटे जा रही है ,
पाकिस्तान की सेना का रुख तो देखो ,
ये भारत से अब तो सटे आ रही है ,
न लो इम्तहाँ ,सब्र की भी है सीमा ,
की इसके सिवा कोई चारा न देखा ,
(पाक )तिरी कूटनीति का ये (मनमोहन )पी. एम. कदरदां ,
तूने तमाशा बनाकर तमाशा न देखा ,

पर पाक सुनो की ये मृत्यु तुम्हारी ,
एक दिन होके रहेगी भारत के हाथों ,
बुझने से पहले बहुत है भभकता ,
हर दीप का एक सन्देश भाँपो ,

सो तेज पकड़ लो जितना भी ये समय नहीं आएगा फिर ,
ये महाकाल का रूप बनाकर भारत ही खायेगा फिर (क्यूंकि तुम्हारा जन्मदाता यही है )
अब करो प्रार्थना मित्रों तुम सेना को फिर से धार मिले ,
नपुंसकों की बहुत हो गयी ,वीरों की सरकार मिले। ……………

आधुनिक लोकतंत्र में जनता /लेखक  सबकी परतन्त्रता  के बावजूद ……….

भारतीय स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!!!!
उन वीरों को नमन जिन्होंने हँसते -हँसते भारत देश के लिए अपने प्राण दे दिए  !
कृतज्ञ राष्ट्र हार्दिक आभार के साथ उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
और ये संकल्प की हम कलम को ही अपनी तलवार बनाकर ये जंग जारी रखेंगे स्वतन्त्रता  के लिए
 ……………….
खुशबू जिन्दा है तो समझो की चमन जिन्दा है ,
फूल को चाहने वालों का चलन जिन्दा है ,
वक़्त की साँस भी थम जाए मगर हाथों में ,
कलम जिन्दा है तो समझो की वतन जिन्दा है …
वन्दे भारत मातरम् ! जय हिन्द !! जय माँ भारती !!!


डॉ. डी. एन. मिश्रा  'धीरज'



Tuesday, August 13, 2013

सर्वप्रथम हमारे आदरणीयों को सादर प्रणाम !!और साथी वर्ग को सप्रेम अभिवादन !!!!!
आज के दिन १३ अगस्त १९९७ को माननीय उच्चतम न्यायालय  ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ लैंगिक समानता और गारंटी के बुनियादी मानव अधिकार के प्रभावी प्रवर्तन के लिए दिशा निर्देशों और मानदंडों को पालन करने का आदेश दिया  ………………………. लेकिन   ये आदेश ,आदेश   ही रहा आज तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। …और केवल यही आदेश नहीं है जिसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया हमारी न्यायपालिका के अधिकतर आदेश ऐसे ही होते हैं जिनका पालन नहीं होता ,हमारे तीनों स्तम्भ आज बिलकुल ही हिले हुए हैं चाहे वो विधायिका हो ,चाहे कार्यपालिका हो या फिर न्यायपालिका   ………………. जनता का विश्वास तीनों से ही उठ चुका  है ,किसी भी गरीब के साथ चाहे जितना अन्याय हो जाए वह इन सबके  सामने जाने से  कतराता है  ………… क्यूंकि काफी हद तक इनकी कार्यशैली भी ऐसी ही है जिससे जरूरत मंद  आश न लगा सके  …………. हमने चौथे स्तम्भ से संबोधन दिया हमारी मीडिया को लेकिन बड़े ही दुःख का विषय है की हमारा मीडिया भी आशाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा …………… अधिकतर मीडिया हाउसेज या तो बिक चुके हैं या किसी राजनेता /विदेशी की संस्था के रूप में काम कर रहे हैं ये तो हो गया शहर का हाल गाँव के पत्रकार बंधुओं में अधिकतर मैट्रिक भी नहीं पास हैं और यहाँ -वहाँ  की दलाली ही उनका मुख्य पेशा  है , ऐसे में वे कलम के जोर पर कैसे कुछ कर सकते हैं ……………….

मैं अपने मुख्य विषय पर आता हूँ यौन उत्पीड़न  …………। आज हमारे देश का दुर्भाग्य कह लीजिये या फिर गन्दा चलन जिसके कारण  आये दिन ऐसी  ख़बरें अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर जगह बनती हैं ,आखिर हमारी माँ -बहनों को केवल भोग की वस्तु  क्यूँ मान लिया गया है ??? वो दिन -दोपहर-रात्रि में अकेले चलने में असुरक्षा क्यूँ महसूस करती हैं ??? सहकर्मियों के साथ कार्य करने में भी वो सहमी सी क्यूँ रहती हैं ?? इसके पीछे हमारा पुरुष प्रधान समाज कहाँ तक जिम्मेदार है ??? और हम स्वयं जवाबदेही से क्यूँ बचते हैं  ……………। अपनी माँ बहन के लिए सम्मान और दूसरों के लिए अपशब्द संबोधन आज - कल बहुतायत प्रचलन में है ,एक बात याद रखने योग्य है की जब आप किसी नारी का अपमान या उससे छीटाकशी  करते हो तो आप तो केवल थोड़ी देर का मनोरंजन कर लेते हो परन्तु वो नारी ह्रदय (जो मातृसत्ता का द्योतक भी होता है ) एकदम से तार -तार  हो जाता है उन्हें अपने आस -पास के हर पुरुष से डर  लगने लगता है  …………………. ये सब समझता हर कोई है लेकिन जान बूझ कर समझने का प्रयास नही करता ,क्या कभी ऐसा हुआ है कि  किसी नारी ने ऐसी अभद्रता का परिचय दिया हो समाज में ?? खुले  आम समाज में या सड़क पर किसी पुरुष को शारीरिक   रूप से प्रताड़ित  किया हो  जब वे ऐसा नहीं करती तो आप क्यूँ दानवों जैसा व्यवहार करते हो , आपसे समाज स्वामी विवेकानन्द ,दयानन्द  सरस्वती जैसी उम्मीद नहीं रखता  केवल इतनी रखता है की आप नारियों को सम्मान देना सीखे ,ये चाहे जिस रूप में हों या जहाँ भी हों  ………… कुछ लोग नारियों के पहनावे की बात करते हैं मेरा तर्क है की आपके सामने से जैसे विदेशी महिलायें गुजरती हैं तो आप सोचते हैं ये तो इनका पहनावा ही है इसपे क्या सोचें ,इसी प्रकार जो स्वदेशी होकर भी विदेशी जैसी दिखनी चाहिती हैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिये  आप केवल अपनी चित्तवृत्ति  स्थिर  रखिये , सबके प्रति सम्मान रखिये ऐसी मेरी प्रार्थना है , मैं इतना योग्य नहीं हूँ कि आप सबके समक्ष प्रवचन दे सकूँ  लेकिन मन में विचार आया सो प्रकट कर दिया  ………………. आप सबके तर्क और सुझाव आमंत्रित हैं  ……………
यत्र नार्यन्स्तु  पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।।
अर्थ = जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमण  करते  हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सारे कार्य निष्फल होते हैं ।

Sunday, August 11, 2013

आज  मन   उद्द्विग्न  था  बहुत  कि  हमारे आस - पास  विचरण करने वाले ,हम पर  आश्रित रहने वाले जीव जंतुओं पर कुछ  लिखा जाए  अतः अपने विचार प्रस्तुत कर  रहा  हूँ  , आपका  सुझाव एवं शिकायत शिरोधार्य करूंगा ,अगर आपने उचित प्रतिक्रिया दी तो ……………………………।


सृष्टिकर्ता /विधाता /गॉड /ईश्वर /अल्लाह ………प्रकृति इत्यादि  ने हमारे लिए और हमारे जीवन यापन के लिए  विविध प्रकार की सामग्रियाँ / वनस्पतियाँ  बनायीं ,इसी प्रकार से उन  तमाम जीवों के लिए  भी जो विधाता की इस सृष्टि में विचरण करते हैं ,फिर  ऐसा क्यूँ होता  कि हम इनकी जान के भूखे हो जाते हैं ? समस्त जीवों और  जंतुओं में मानव सबसे समझदार माना गया है फिर मानव  …… दानव जैसे कृत्य क्यूँ करता है  ……………………. जीव हत्या को कौन सा धर्म / मजहब  या शास्त्र  उचित ठहराता  है ???  जब हमारे जीवन में कोई दखल नहीं देता है तो हम अनायास केवल अपनी क्षुधा पूर्ती के लिए इनके प्राण क्यूँ ले लेते हैं ?????   और महत्त्वपूर्ण बात ये है की अगर हम जीवन दे नहीं सकते तो लेने का क्यों और कैसे अधिकार मिल गया हमें ??  अब आप कहेंगे की हम तो मारते नहीं जीवों को हम तो सिर्फ खाते हैं तो जीव को मारना और मरे हुए जीव को खाना एक ही बात है  ……………. आप हमारे सत्य सनातन  हिन्दू धर्म को देखें  इसमें हर प्राणी की पूजा का विधान है चाहे वह जिस किसी भी योनि में हो.……। पशु ,पक्षी सब किसी न किसी देवी देवता से सम्बद्ध हैं हमारे धर्म में.……. ऐसा इसलिए है की इनका भी जीवन जीने का अधिकार है   …………… हमारे आपके लिए समस्त  दुनिया बनायीं विधाता ने और इनके लिए इनके लायक स्थान  ऐसा  कदापि  नहीं है की इनके स्थान हमारे लिए किसी प्रकार की असुविधा उत्पन्न करते हैं  …………। फिर ऐसा जघन्य अपराध क्यूँ। ……………… आप चाहे  जो खाइए इतनी बड़ी सृष्टि में मनाही थोड़े है किसी चीज की, क्या जीव जंतु ही बचे हैं आपके लिए , अगर  आज आप उनकी   निर्मम तरीके से हत्या कर दे रहें हैं और उन्हें खा रहे हैं तो शायद आपका ये हिंसात्मक रवैय्या कल को मानवमात्र  के लिए भी हानिकारक हो जाए , इसमें कतिपय संदेह नहीं है। ……. आप गौर करेंगे तो देखेंगे की जो व्यक्ति इन सबसे सम्बद्ध होगा उसके अन्दर रजस और तामस  गुण का आधिक्य होगा ………… ऐसे लोग किसी भी समय निर्मम हो सकते हैं किसी के भी प्रति ……………खाने के लिए अगर ऐसी ही चीजें खानी हैं तो आजकल बाजार में कृत्रिम  चीजें उपलब्ध हैं जो बिना किसी को हानि पहुंचाए  प्राप्त की जा सकती हैं। ………………फिर जीव हत्या का विकल्प ही क्यूँ   …………। गोमाता जिन्हें हम मातृसत्ता का द्योतक मानते हैं आजकल  इनकी भी सरेआम हत्या जोरों पर है , न केवल जोरों पर  अपितु  वर्तमान में सबसे ज्यादा आंकड़ा गो हत्या का ही है ,जबकि ये जगजाहिर है की अगर आप धर्म के  नाम पर इन्हें गोमाता  नहीं स्वीकार सकते तो इनके गुणों पर आप मजबूर होक आप इन्हें मातृसत्ता  मान ही लेंगे क्यूंकि  जो औषधीय गुण  गाय के दुग्ध ,घी ,दही,छाछ ,मूत्र ,गोबर इत्यादि में है  वो इस धरा पर कहीं और सर्वथा असंभव है  ………………।
बाकी मन तो मन है इसके अनुसार अगर आप चलेंगें तो विनाश सुनिश्चित है  अतः इसे अपने अनुसार चलाइये   …………………………।  सत्य ही है कि   ………………
मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर ,
मन के मत चलिए नहीं पलक पलक मन और  ………………. 

Friday, August 9, 2013