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Tuesday, August 12, 2014

मात्र दो प्रज्ञाचक्षु युक्त व्यक्ति ही सदैव एक -दूसरे से अन्तर्संवाद स्थापित  करते हुए साथ रह सकते हैं ,इनमे एक नए तरह के प्रेम का उदय होता है जिसे आप मित्रता कह सकते हैं।  इस तथाकथित प्रेम में मित्रता अधिक गरिमामयी होती है ,इस प्रेम में घृणा ,संघर्ष ,लड़ना ,झगड़ना सब समाप्त हो जाता है ;अधिकार और आत्मनियंत्रण की कामना बलवती हो जाती है।  'मित्रता शुद्धतम प्रेम है।' इसमें जो कुछ  भी असार ,अर्थहीन होता है पीछे छूट जाता है केवल सारभूत और सुवास ही शेष बचता है।
              मित्रता ,प्रेम की ही सुवास है। स्मरण रहे जब तक आप अपने जीवनसाथी के मित्र नही बन जाते कभी भी शांति और समरसता का भान नही कर पाएंगे। 

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