गुजरात की भूकंप त्रासदी पर ! ( २६ जनवरी २००१ भुज का भूकंप)
अभी तक तो सुबह का वो सूरज उगा था;और चिड़ियों ने थोडा सा दाना चुगा था;
सवेरे की रौनक जगी थी घरों में ;बजी थी अभी घंटियाँ मंदिरों में;
अभी बचपनों को था नीदों ने घेरा;अभी हो न पाया था पूरा सवेरा;
कि हलचल हुई और धड़कन थमी थी;कि साँसों कि रफ़्तार बिलकुल जमीं थी;
नही जान पाए कि क्या कुछ कहाँ है;कदम दर कदम मौत का कारवां है;
था गणतंत्र के गीत गाता वो बचपन ;कतारों में नारे लगाता वो बचपन;
जुलूसों कि मानिन्द बहती वो गंगा;कि लहरों में लेकर चली थी तिरंगा;
कि बस लड़खड़ाने लगा वो शहर था; कि इंसानियत पर खुदा का कहर था;
जमींदोज होती थी अट्टालिकाएं ;चतुर्दिक करुण दृश्य सबको रुलाएं;
कि भूचाल में ढह रहा हर मकाँ है;कदम दर कदम..................
थी माँ पूंछती अपनी नन्ही सी जाँ को;वो मासूम था ढूंढता अपनी माँ को;
बहन पूंछती थी कहाँ मेरा भाई?कि भाई को भी आ रही थी रुलाई;
पिता ने कहीं खो दिया था दुलारा; दुलारा जो था उनकी आँखों का तारा;
दफ़न हो रहीं थी शवों की कतारें ;कराहें पुकारें रुदन चीत्कारें;
कि कब्रों में तब्दील हर आशियाँ है;कदम दर कदम....................
करुण आहटें थी मकानों के नीचे; या चिल्लाहटें थीं मकानों के नीचे;
थी आवाज केवल बचाओ बचाओ ;जरा हाथ थामो ये मलबा हटाओ!
चतुर्दिक मचा था जो कोहराम भीषण;वहां दिख रहा था सब अंजाम भीषण;
कि कुदरत ने कैसा कहर ला दिया था;कि गुजरात का ये शहर ढा दिया था ;
गवाही को तो सिर्फ वो आश्मां है;कदम दर कदम मौत........................
ये कमजोर बुनियाद के जो भवन हैं ;बिना आग के बिन धुंए के हवन हैं;
ये बहुमंजिलें खूबसूरत मकाँ हैं ;यहाँ जिंदगी रोज होती जवाँ है;
ओ निर्माण के बेरहम रहनुमाओं !न बुनियाद कमजोर घर की बनाओ!
चलो हम बनायें नई एक ईमारत;हो जिस पर टिकी जिंदगी की इबारत;
ये भूकंप की त्रासदी की बयां है;कदम दर कदम मौत का कारवाँ है.......
No comments:
Post a Comment