पूज्यवर! मेरी साध थी की अपनी साहित्य साधना का उत्तमांश ही आपको अर्पण करूँ ;परन्तु मेरी यह साधना फलवती होने के पूर्व ही आप स्वर्गस्थ हो गये;आज अपनी रचना से आपकी पुण्य स्मृति का ही तर्पण कर रहा हूँ!!!!
दिनकर है जिसका अरुण आस्य,
वसुधातल जिसके युगल चरण,
है नाभि गगन ,घन शीर्ष केश,
पावक ज्योतिर्मय दीर्घ नयन,
कमलिनी है जिसकी अस्थिपुन्ज,
आशाएं जिसकी श्रवण पात्र ,
है विटप देह की रोम राजि,
पलकें हैं जिसकी दिवस-रात,
माया जिसकी मुस्कान मधुर ,
मनचन्द्र,कंठ है महर्लोक ,
नाडियाँ आपगा,श्रोत शब्द ,
जिह्वा रस,मस्तक सत्यलोक,
संध्या जिसका परिधान भव्य,
स्वायम्भुव मनु है बुद्धि प्रखर,
महतत्त्व चित्त,अव्यक्त ह्रदय,
यह मन जिसका आवास सुघर ,
जप रहा सतत् प्रतिदिन प्रतिपल,
पशुपति,शिव हैं जिसके सुनाम,
उस परम पूज्य ,इश्वर स्वरुप,
पिता श्री को है शतशः प्रणाम...
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