विनम्रता कभी भी किसी के आश्रय पर अवलम्बित नही होती ,हम तब भी निरहंकार और विनम्र हो सकते हैं जब कोई दूसरा उपस्थित न हो ;यदि हमें विनम्र और निरहंकार होने के लिए किसी दूसरे की आवश्यकता है तो यह विनम्रता नही निर्भरता है। अतः स्वाभाविक और स्थायी विनम्रता के मालिक बनिये ,सदैव विनम्र रहने का प्रयास करिये।
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