मेरा भी एक ख़ुदा है ,
जो नमकहरामी नही सिखाता ,
नही सिखाता है जिहाद ,
देश में बंटना और बाँटना भी नही सिखाता ,
देश में रहकर इसका मखौल बनाना ,
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख, ईसाई का अन्तर बताना ,
चर्चों ,मस्जिदों,मन्दिरों व गुरुद्वारों में भेद भी नही सिखाता ,
सिखाता है अमन चैन से रहना
अपनी रोटी को बांटकर खाना ,
किसी के दुःख में खुद दुखी हो जाना ,
भले ही उसकी खुशियों में शरीकी का समय न मिले।
"करे यदि ईश फिर भी जन्म मेरा ,बना सेवक रहूँ मैं हिन्द तेरा ,
चाहे मरुभूमि या कि उर्वरा हो ,स्वजननी किन्तु भारत की धरा हो। "
"जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है ,
वह नर नही ,नरपशु निरा है ,और मृतक समान है। "
जो नमकहरामी नही सिखाता ,
नही सिखाता है जिहाद ,
देश में बंटना और बाँटना भी नही सिखाता ,
देश में रहकर इसका मखौल बनाना ,
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख, ईसाई का अन्तर बताना ,
चर्चों ,मस्जिदों,मन्दिरों व गुरुद्वारों में भेद भी नही सिखाता ,
सिखाता है अमन चैन से रहना
अपनी रोटी को बांटकर खाना ,
किसी के दुःख में खुद दुखी हो जाना ,
भले ही उसकी खुशियों में शरीकी का समय न मिले।
"करे यदि ईश फिर भी जन्म मेरा ,बना सेवक रहूँ मैं हिन्द तेरा ,
चाहे मरुभूमि या कि उर्वरा हो ,स्वजननी किन्तु भारत की धरा हो। "
"जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है ,
वह नर नही ,नरपशु निरा है ,और मृतक समान है। "