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Saturday, March 21, 2009

deene aadmeeyat


आदमी को आदमी का दर्द न हो कैसे मुमकिन है, आदमी आदमी का हमदर्द न हो कैसे मुमकिन है, ये जो बैरभाव का है सिलसिला इसके पीछे कोई बेदर्द न हो, कैसे मुमकिन है? सिरफिरों का दिमागी फितूर है,नफरत , आदमी की दवा आदमी न हो कैसे मुमकिन है?
धीरेन्द्र नाथ मिश्रा "धीरज" ,वरिष्ठ पत्रकार

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