छिड़ी है ताल बेसुर किन्तु स्वर पञ्चम नही आया ,
बहारों का अभी इस बाग़ में मौसम नही आया ,
मिले दिल के कई दरिया हमें निज दृष्टि के पथ मे,
दिलों से पर दिलों का अब तलक संगम नही आया ,
अरे मेरे खुदा मुझको अभी कुछ और आँसू दे,
भरोसा तोड़ दे मेरा अभी वो गम नही आया ,
खड़ा हूँ तान कर सीना सियासत की खिलाफत में ,
भले ही साथ देने को कोई हमदम नही आया,
मैं हूँ सूरज अकेला किन्तु मेरी रोशनी ढँक ले ,
अभी संसार के बादल में इतना दम नही आया,
भले हूँ आदमी छोटा मगर इतना बता दूं मैं ,
की जज्बा मेरे दिल मे भी किसी से कम नही आया ........
BY D.N.MISHRA 'SENIOR JOURNLIST '..................