कसम उस मौत की उठती जवानी में जो आती है,
नई दुल्हन को विधवा माँ को जो पागल बनती है,
जहाँ से झुटपुटे के वक्त एक ताबूत निकला हो ,
कसम उस रात की पहले पहल उस घर में आती है,
अजीजों की निगाहें ढूंढती है मरने वाले को,
कसम उस सुबह की जो गम का ये मंजर दिखाती है ,
कसम उन आंसुओं की माँ की आंखों से जो बहते हैं,
जिगर थामे हुए जब लाश पर बेटे की आती है,
कसम उस बेबसी की अपने शौहर के जनाजे पर ,
कलेगा थाम कर जब ताज़ा दुल्हन सर झुकाती है,
नजर पड़ते ही इक जीमर्त्बा मेहमान के चेहरे पर,
कसम उस शर्म की मुफलिस की आंखों में जो आती है,
की ये दुनिया सरासर ख्वाबे और ख्वाबे परीशां है,
खुशी आती नही सीने में जब तक साँस आती है,...............डी.एन.मिश्रा "धीरज "